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5. 'कसायपाहुड' की अनेक गाथाएँ तो इतनी गूढ़ हैं कि यदि आचार्य यतिवृषभ
ने उन पर चूर्णिसूत्र न लिखे होते तो उन गाथा-सूत्रों का अर्थ शायद कोई
भी नहीं समझ पाता। 6. यह ग्रन्थ करणानुयोग का विशेष ग्रन्थ है। 7. इसमें कर्मसिद्धान्त का विशेष वर्णन है। 8. वास्तव में यह ग्रन्थ सर्वश्रेष्ठ है। आगम और तीर्थंकर की वाणी समझा
जानेवाला यह ग्रन्थ अपना विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। 9. यह ग्रन्थ ज्ञान-विज्ञान का ग्रन्थ है। मनोविज्ञान की दृष्टि से भी यह महान
ग्रन्थ है। 10. इस ग्रन्थ पर अनेक टीकाएँ, वृत्तियाँ तथा चूर्णिसूत्र लिखे गये हैं। उदाहरण
• यतिवृषभ स्वामी कृत चूर्णिसूत्र • उच्चारणाचार्य कृत उच्चारणासूत्र • शामकुण्डाचार्य कृत पद्धति • तुम्बलूराचार्य कृत चूड़ामणि • बप्पदेव गुरु कृत व्याख्याप्रज्ञप्ति
इन सभी के अतिरिक्त आचार्य वीरसेन एवं आचार्य जिनसेन स्वामी की 'जयधवला' टीका प्रमुख है। ग्रन्थ का मुख्य विषय जयधवला 60,000 श्लोक प्रमाण टीका है। एक श्लोक में 32 अक्षर होते हैं। इस तरह 60,000 x 32 = 19,20,000 शब्दों में यह विशालकाय टीका है। जब गुजरात में राजा अमोघवर्ष का शासनकाल था, उस समय फाल्गुन शुक्ल दशमी शक सं. 759 आष्टाह्निक महापर्व में कसायपाहुड ग्रन्थ को पूरा किया गया था। जयधवला का रचनाकाल इसकी प्रशस्ति में दिया गया है कि गुजरात के बड़ौदा गाँव में चन्द्रप्रभु भगवान के मन्दिर में यह ग्रन्थ लिखा गया था। इस ग्रन्थ की भाषा प्राकृत एवं संस्कृत दोनों मिली-जुली भाषाएँ हैं। इसे इन्होंने मणिप्रवाल शैली कहा
है।
प्रत्येक अधिकार में ग्रन्थ की विषय-वस्तु को उसी प्रकार क्रमिक ढंग से आगे बढ़ाया है, जिस प्रकार अनादिकालीन मिथ्यादृष्टि जीव शनैः-शनैः आगे बढ़ता हुआ मोक्ष प्राप्ति करता है। ग्रन्थ की विषय-वस्तु इस प्रकार है
मंगलाचरण : ग्रन्थ में सबसे पहले 8 गाथाओं में मंगलाचरण किया गया
धवला, महाधवला और जयधवला :: 71