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शेष लगभग 40 हजार श्लोकप्रमाण टीका उनके शिष्य आचार्य जिनसेन स्वामी ने लिखी है।
धवला, महाधवला और जयधवला-ये तीनों ग्रन्थ बहुत कठिन सिद्धान्त ग्रन्थ माने जाते हैं। साधारण व्यक्ति को इन्हें समझना कठिन है। इन्हें वही ठीक से समझ सकता है जिसमें उचित ज्ञान-वैराग्य हो। हम यहाँ संक्षेप में इन तीनों ग्रन्थों का परिचय लिख रहे हैं, क्योंकि ये जैन साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।
कषायपाहुड (जयधवला) ग्रन्थ के नाम का अर्थ इस ग्रन्थ के दो नाम हैं-1. कषायपाहुड, 2. पेज्जदोसपाहुड पाहुड शब्द के तीन अर्थ होते हैं : पहला है, अधिकार, दूसरा है, उपहार देना और तीसरा है जो परम्परा से चला आ रहा है। यहाँ कसायपाहुड का अर्थ कषायों को जीतने का अधिकार' भी कर सकते हैं। या कषायों को जीतने का जो ज्ञान परम्परा से चला आ रहा है उसे भी पाहुड कह सकते हैं।
इसी प्रकार 'पेज्जदोसपाहुड' का अर्थ है-'पेज्ज' शब्द का अर्थ राग है, दोस अर्थात् द्वेष। अर्थात् यह ग्रन्थ राग और द्वेष का निरूपण करता है। सरल भाषा में हम कह सकते हैं कि यह राग और द्वेष को जीतनेवाला ग्रन्थ है।
जयधवला : कषायपाहुड की टीका 'जयधवला' है। इसका नाम जयधवला इसलिए रखा गया, क्योंकि यह ग्रन्थ कषायों पर विजय प्राप्त करने की विधि सिखाता है। कषायों को जीतकर आत्मा शुद्ध एवं धवल बन जाती है, अत: इसका नाम जयधवला है।
जयधवला का प्रकाशन : जयधवला का प्रकाशन भारतीय दिगम्बर जैन संघ, चौरासी मथुरा से हुआ है। सन् 1942 से 1988 के बीच सोलह भागों में इसका प्रकाशन हुआ है। पंडित फूलचन्द्रजी शास्त्री, पंडित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, पंडित महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य जैसे उच्चकोटि के विद्वानों ने इस ग्रन्थ का सम्पादन किया है। ग्रन्थकारों का परिचय आचार्य गुणधर स्वामी : कसायपाहुड की रचना आचार्य गुणधर स्वामी ने की है। आचार्य गुणधर स्वामी का समय विक्रम पूर्व प्रथम शताब्दी माना जाता है। वे
धवला, महाधवला और जयधवला :: 69