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प्रमुख टीकाएँ टीकानाम टीकाकार
काल 1. गंधहस्ति महाभाष्य आचार्य समंतभद्र स्वामी ई. पहली शताब्दी 2. सर्वार्थसिद्धि आचार्य देवनन्दि पूज्यपाद ई. पाँचवीं शताब्दी 3. तत्त्वार्थवार्तिक आचार्य अकलंक देव ई. छठवीं शताब्दी 4. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक आचार्य विद्यानन्दी ई. आठवीं शताब्दी 5. तत्त्वार्थसार आचार्य अमृतचंद्रसूरि ई. दसवीं शताब्दी 6. तत्त्वार्थवृत्ति आचार्य श्रुतसागरसूरि ई. चौदहवीं शताब्दी ग्रन्थ का मुख्य विषय इस ग्रन्थ में कुल दस अध्याय और 357 सूत्र हैं। दस अध्यायों में सात तत्त्वों का वर्णन किया गया है।
जीव तत्त्व का वर्णन : पहले से चतुर्थ अध्याय तक अजीव तत्त्व का वर्णन : पंचम अध्याय में आस्रव तत्त्व का वर्णन : छठे और सातवें अध्याय में बन्ध तत्त्व का वर्णन : आठवें अध्याय में संवर-निर्जरा तत्त्वों का वर्णन : नवें अध्याय में
मोक्ष तत्त्व का वर्णन : दसवें अध्याय में मंगलाचरण
मोक्षमार्गस्य नेतारं, भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वन्दे तद्गुणलब्धये।।
ग्रन्थ का प्रारम्भ इस मंगलाचरण से किया है। जैन परम्परा में इस मंगलाचरण को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसमें किसी व्यक्ति विशेष को नहीं, अपितु वीतराग-सर्वज्ञ-हितोपदेशक भगवान को प्रणाम किया गया है। आचार्य उमास्वामी किसी लौकिक आकांक्षा के बिना, मात्र उनके उत्तम गुणों को प्राप्त करने की प्रार्थना वीतराग देव से करते हैं।
इस मंगलाचरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस श्लोक के आधार पर ही अनेक स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे गये हैं। जैसे-आप्तपरीक्षा, आप्तमीमांसा आदि। ___ अत: इस श्लोक को अच्छे से पढ़ना और समझना चाहिए। 174 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय