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की भक्ति करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु, आपके चरणों का स्पर्श ही प्राणियों के पापों का नाश करनेवाला है तथा जो भक्त इन चरण-युगलों का सहारा लेते हैं वे संसार-समुद्र से पार हो जाते हैं । अर्थात् प्रभु, आपकी भक्ति भक्त को अमर बना देती है।
2. स्तुति संकल्प दूसरे पद्य में आचार्य स्वयं को अल्पबुद्धि वाला सामान्य व्यक्ति बताते हैं और समस्त इन्द्रों द्वारा पूजित प्रभु आदिनाथ की स्तुति करने का संकल्प लेते हैं। 3. लघुता की अभिव्यक्ति जिस प्रकार नासमझ बालक चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को जल में देखकर उसे पकड़ने का प्रयास करता है, उसी तरह मैं (आचार्य मानतुंग) अल्पबुद्धि भी आपकी स्तुति करने का प्रयास कर रहा हूँ। 4. अवर्णनीय जिनवर गुण इस काव्य में आचार्य कहते हैं कि चन्द्रमा की कान्ति के समान आपके उज्ज्वल गुणों को व्यक्त करने में कोई भी समर्थ नहीं है, स्वयं बृहस्पति गुरु भी आपके गुणों को व्यक्त नहीं कर सकते हैं।
5. भक्ति की शक्ति इस काव्य में आचार्य कहते हैं कि प्रभु के गुणों का वर्णन करने में मैं असमर्थ हूँ, किन्तु भक्तिवश आपकी स्तुति कर रहा हूँ, जिस प्रकार दुर्बल हिरणी वात्सल्य के कारण अपने बच्चों की रक्षा करने के लिये शक्तिशाली शेर से भी लड़ जाती है। 6. स्तुति का एकमात्र कारण भक्ति इसमें आचार्य कहते हैं कि जिस प्रकार बसन्त ऋतु में आम की मंजरियाँ खाकर कोयल मधुर स्वर में बोलती है, उसी प्रकार भक्ति के कारण ही मैं आपकी स्तुति कर रहा हूँ।
भक्तामरस्तोत्र :: 99