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7. स्तुति का फल
प्रभु, आपकी भक्ति में लीन होने से समस्त प्राणियों के अनेक जन्मों के संचित पाप-कर्म एक क्षण में ही नष्ट हो जाते हैं, जैसे- सूर्य के निकलते ही अन्धकार नष्ट हो जाता है।
8. प्रभुता का प्रभाव
हे प्रभु! आपके प्रभाव से अवश्य ही यह स्तोत्र सज्जनों के मन को आनन्दित करेगा ।
9. जिनेन्द्र का नाम ही पापनाशक है
इस काव्य में आचार्य कहते हैं कि हे प्रभु! आपके स्तोत्र की असीम शक्ति तो अद्भुत और अपूर्व है । समस्त पापों का नाश करने के लिए तो श्रद्धा-भक्तिपूर्वक लिया गया आपका नाम ही काफी है अर्थात् आपके नाम के उच्चारण मात्र से समस्त पापों का नाश हो जाता है।
10 समस्त गुणों की प्राप्ति
भक्ति का उदार फल बताते हुए आचार्य कहते हैं कि हे प्रभु! आपके क्षमा, शील, सत्य आदि अनेक गुणों की स्तुति करनेवाला मानव भी स्वयं उन गुणों को जीवन धारण करके आपके समान महान बन जाता है ।
11. परम दर्शनीय सुख
हे प्रभु! आपका अलौकिक सौन्दर्य अपलक देखने योग्य है, आपको देख लेने मात्र से सन्तोष सुख प्राप्त होता है, अब किसी ओर को देखने की इच्छा ही नहीं रहती है।
12. अनुपम सौन्दर्य
आचार्य कहते हैं कि हे त्रिलोकीनाथ! आपका सौन्दर्य अद्भुत अनुपम है, संसार के समस्त शान्त - सुन्दर - मनोहर परमाणुओं से आपका दिव्य शरीर बना हुआ है।
100 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय