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ग्रन्थ का महत्त्व 1. तिलोयपण्णत्ती करणानुयोग का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह प्राकृत भाषा में है। 2. इस ग्रन्थ में तीन लोक का और 63 शलाका महापुरुषों का परिचयात्मक
वर्णन किया गया है। 3. यह ग्रन्थ त्रिलोकवर्ती विश्व-रचना का सार रूप में दर्शन करानेवाला ___ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। 4. तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ सम्पूर्ण गणित का ज्ञान देनेवाला अनमोल ग्रन्थ है।
सरल रूप में हम कह सकते हैं कि गणित विषय का सम्पूर्ण ज्ञान तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ से प्राप्त हो सकता है। 5. इस ग्रन्थ में जो परिणाम और गणितीय सूत्र दिये गये हैं, उनका ऐतिहासिक
दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। आगम-परम्परा-प्रवाह में आया हुआ यह गणितीय विषय अनेक वर्ष पूर्व का है। इसमें क्रियात्मक, रैखिकीय,
अंकगणित एवं बीजगणितीय प्रतीक आदि विषय उपलब्ध हैं। 6. इस ग्रन्थ में वर्णित जो गणित का विषय है वह सामान्य लोकप्रचलित
गणित न होकर लोकोत्तर विषय है, जो विशिष्ट सिद्धान्तों को आधार लेकर प्रतिपादित किया गया है। जैसे-संख्याओं के लिए संख्यात, असंख्यात एवं अनन्त का प्रयोग है। अतः इस ग्रन्थ का सम्पूर्ण गणित तीन लोक की रचना के ज्ञान हेतु अनुकूल है। 7. कर्मसिद्धान्त एवं अध्यात्म-सिद्धान्त विषयक ग्रन्थों में प्रवेश करने हेतु इस
ग्रन्थ का अध्ययन आवश्यक है। यह ग्रन्थ अनेक ग्रन्थों को अच्छी तरह
समझने हेतु सुदृढ़ आधार बनाता है। 8. इस ग्रन्थ में गणित, भूगोल एवं खगोल विषय का विस्तृत वर्णन है। ग्रन्थ का मुख्य विषय तिलोयपण्णत्ती में तीन लोक के स्वरूप, आकार, प्रकार, विस्तार, क्षेत्रफल और युगपरिवर्तन आदि विषयों का निरूपण किया गया है। प्रसंगवश जैन सिद्धान्त, पुराण और भारतीय इतिहास विषयक सामग्री भी निरूपित है।
मंगलाचरण : सबसे पहले मंगलाचरण में पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया है। उसके बाद मंगल शब्द के भेद, मंगलाचरण की सार्थकता, मंगलाचरण का प्रयोजन आदि अनेक विषय चालीस सूत्रों द्वारा समझाये गये हैं।
उसके बाद राजा, अधिराज, महाराज, अर्धमण्डलीक, मण्डलीक और 88 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय