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अधिकार के प्रारम्भ में पद्मप्रभ भगवान को नमस्कार किया है और अन्त में सुपार्श्वनाथ भगवान को नमस्कार किया है।
___ इस अधिकार में सबसे पहले मनुष्यलोक की स्थिति एवं प्रमाण का, मनुष्यलोक का क्षेत्रफल एवं घनफल निकालने की विधि का वर्णन है।
जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, घातकीखण्ड, कालोदक समुद्र, पुष्करार्ध द्वीप, भरतक्षेत्र, भरतक्षेत्र का विस्तार, गंगा आदि नदियों का वर्णन, भरतक्षेत्र के छह खंड का वर्णन, सुषमा-दुखमा आदि कालों का वर्णन, कल्पवृक्ष, भोगभूमि, चौदह कुलकर, चौबीस तीर्थंकरों के अवतरण, जन्मस्थान, माता-पिता आदि का वर्णन
और तीर्थंकरों के वंश और पाँचों कल्याणकों का वर्णन, समवसरण की रचना का वर्णन और समवसरण में गणधर, ऋद्धिधारी देवों आदि का वर्णन किया है। चक्रवर्तियों के स्वरूप का भी वर्णन है। कामदेव, नारायण और प्रतिनारायण, महापुरुषों आदि सभी का वर्णन इस अधिकार में है।
उसके बाद भरतक्षेत्र के पर्वत, मेरू, शैल, नदी, वृक्ष और जंगज आदि का वर्णन है। उसके बाद विदेहक्षेत्र का, लवणसमुद्र का, घातकी खण्डद्वीप का, कालोद समुद्र और पुष्करवर द्वीप आदि का विस्तार से वर्णन है।
__ मनुष्यों के भेद, उनकी संख्या, मनुष्य में सुख-दुख का निरूपण, सम्यक्त्व प्राप्ति के उपाय और मुक्त जीवों के प्रमाण का भी वर्णन है।
इस प्रकार यह अधिकार बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं विस्तृत है। मात्र इस अधिकार पर ही अनेक ग्रन्थ, शोधपत्र एवं आलेख लिखे जा सकते हैं।
5. तिर्यग्लोक अधिकार (गाथा 323) इस अधिकार में कुल 323 गाथाएँ हैं। 16 अन्तराधिकारों के माध्यम से तिर्यग्लोक का विस्तृत वर्णन किया गया है। अधिकार के प्रारम्भ में चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र को नमस्कार किया गया है। उसके बाद स्थावरलोक का प्रमाण बताते हुए कहा गया है कि जहाँ तक आकाश में धर्म एवं अधर्म द्रव्य के निमित्त से होनेवाली जीव और पुद्गल की गति-स्थिति सम्भव है, उतना सब स्थावर लोक है। उसके मध्य में सुमेरू पर्वत के मूल से एक लाख योजन ऊँचा और एक राजू लम्बा-चौड़ा तिर्यक् त्रसलोक है; जहाँ तिर्यंच त्रस जीव भी पाये जाते हैं।
तिर्यग्लोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। उन सबके मध्य में एक लाख योजन विस्तारवाला जम्बूद्वीप नामक प्रथम द्वीप है। उसके चारों ओर दो लाख योजन विस्तार से संयुक्त लवण समुद्र है। उसके आगे दूसरा द्वीप और फिर दूसरा
तिलोयपण्णत्ती :: 91