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भक्तामरस्तोत्र
जैन दर्शन में प्रारम्भ से स्तोत्र - रचना की परम्परा रही है । वर्तमान में लगभग 1000 जैन स्तोत्र उपलब्ध हैं, जिनमें से लगभग 15-20 स्तोत्र तो बहुत ही प्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण हैं। जैसे - भक्तामर स्तोत्र, विषापहार स्तोत्र, सिद्धिप्रिय स्तोत्र, कल्याणमन्दिर स्तोत्र, मंगलाष्टक स्तोत्र, स्वयंभू स्तोत्र, पार्श्वनाथ स्तोत्र, महावीराष्टक स्तोत्र, जिनस्तुति शतक, एकीभाव स्तोत्र आदि । सभी स्तोत्रों का अपना-अपना विशेष महत्त्व है । परन्तु भक्तामरस्तोत्र भी इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रतिदिन पठनीय स्तोत्र है। इसका अपना एक विशेष स्थान एवं महत्त्व है। श्रावक इसका पाठन प्रतिदिन करते हैं । अतः श्रावकों को इसका महत्त्व एवं सार समझाने के लिए ही ग्रन्थों की शृंखला में इसे 'भक्तिकाव्य' के रूप में लिया है ।
भक्तामर स्तोत्र के नाम का अर्थ
इस स्तोत्र के दो नाम प्रचलित हैं- 1. भक्तामर स्तोत्र, 2. आदिनाथ स्तोत्र ।
1. भक्तामर स्तोत्र
इस स्तोत्र के नाम के दो अर्थ हैं - पहला कारण तो यह है कि स्तोत्र का पहला पद ही ' भक्तामर' है, चूँकि पहले तो अन्य ग्रन्थों और स्तोत्रों में यह देखने में आया है कि प्रथम पद के अनुसार ही रचना का नाम होता है, अतः 'भक्तामरस्तोत्र' नाम का कारण भी यही है ।
यह स्तोत्र एक भक्तिपूर्ण काव्य रचना है। आचार्य मानतुंग ने जैन धर्म की प्रभावना के लिए पूर्ण श्रद्धा, भक्ति एवं तन्मयता से भगवान की अर्चना की है, स्तोत्र की रचना करते ही आचार्य मानतुंग के ऊपर जो उपसर्ग था वह स्वयं ही दूर हो गया। इस स्तोत्र की रचना करते-करते ही आचार्य मानतुंग अमर हो गये ।
भक्तामर स्तोत्र :: 95