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है-नय, निक्षेप, नाम, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, प्रत्यय, स्वामित्व, वेदनाविधान, गति, अनन्तर, सन्निकर्ष, परिमाण, भागाभाग और अल्पबहुत्व।
इन 16 अधिकरों में नयों का विशद विवेचन किया गया है।
यह वेदना अनुयोगद्वार बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। निक्षेप अधिकार में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-इन चार निक्षेपों द्वारा वेदना के स्वरूप का स्पष्टीकरण किया गया है। इसी प्रकार अन्य अधिकारों में भी जैसा नाम, वैसा विषय है। पाँचवाँ खंड : वर्गणाखण्ड इस खंड में स्पर्श, कर्म और प्रकृति नामक तीन अनुयोगद्वारों का प्रतिपादन किया गया है। इन तीनों अनुयोगद्वारों में क्रमश: 63, 31 और 142 सूत्र हैं।
स्पर्श अनुयोगद्वार में स्पर्श का विचार 16 अधिकारों में किया है। कर्म अनुयोगद्वार में 10 अधिकारों में कर्म का वर्णन है। प्रकृति अनुयोगद्वार में 16 अधिकारों में प्रकृतिनिक्षेप आदि का वर्णन है।
छठा खंड : महाबन्ध खण्ड बन्धनीय अधिकार की समाप्ति के पश्चात् प्रकृति बन्ध, प्रदेश बन्ध, स्थिति बन्ध
और अनुभाग बन्ध का विवेचन छठे खंड में अनेक अनुयोगद्वारों में विस्तारपूर्वक किया गया है।
प्रकृति बन्ध : 'प्रकृति' का शब्दार्थ 'स्वभाव' है। यथा-चीनी की प्रकृति मधुर और नीम की प्रकृति कटुक होती है। इसी प्रकार आत्मा के साथ सम्बद्ध हुए कर्मपरमाणुओं में आत्मा के ज्ञान-दर्शनादि गुणों के आवरण को प्रकृतिबन्ध कहते हैं।
स्थिति बन्ध : वे आए हुए कर्मपरमाणु जितने समय तक आत्मा के साथ बँधे रहते हैं उतने काल की मर्यादा को स्थितिबन्ध कहते हैं।
अनुभाग बन्ध : उन कर्मपरमाणुओं में फलप्रदान करने का जो सामर्थ्य होता है, उसे अनुभाग बन्ध कहते हैं।
प्रदेश बन्ध : आत्मा के साथ बँधनेवाले कर्मपरमाणुओं के ज्ञानावरणादि आठ कर्म और उनकी उत्तरप्रकृतियों के रूप से जो बन्धन होता है, उसे प्रदेशबन्ध कहते हैं। ____ इस छठे खंड में इन चारों बन्धों का 24 अनुयोगद्वारों (अधिकारों) द्वारा वर्णन किया गया है।
षट्खण्डागम :: 85