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धवला, महाधवला और जयधवला
भगवान महावीर की साक्षात् वाणी समझे जानेवाले प्रमुख दो ग्रन्थ हैं। भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् जब श्रुत ज्ञान का ह्रास होने लगा था; तब उसे लिपिबद्ध करने का प्रयास प्रारम्भ हुआ । तब सर्वप्रथम दिगम्बर जैन - श्रुतपरम्परा में दो शिरोमणि आगम-ग्रन्थ लिखे गये
1. षट्खण्डागम : (पुष्पदन्त और भूतबलि आचार्य कृत)
2. कषायपाहुड : (आचार्य गुणधर कृत)
इन दोनों ग्रन्थों पर विक्रम की नौवीं शताब्दी में आचार्य वीरसेन स्वामी ने विशाल एवं गूढ़ गम्भीर टीकाएँ लिखी हैं, उन्हीं के नाम धवला, महाधवला और जयधवला हैं। इनका पृथक्-पृथक् विवरण इस प्रकार है
1. धवला का परिचय
यह षट्खण्डागम के प्रारम्भ के पाँच खण्डों पर लिखी गयी टीका है । यह 72 हजार श्लोक - प्रमाण टीका है।
2. महाधवला का परिचय
षट्खण्डागम के अन्तिम छठे खण्ड का नाम महाबन्ध है । यह 30 हजार श्लोकप्रमाण है। इसे धवला, जयधवला के अनुकरण पर महाधवला के नाम से जाना जाता है।
3. जयधवला
यह 'कसायपाहुड' पर लिखी गयी 60 हजार श्लोकप्रमाण टीका है। इसमें आचार्य वीरसेन स्वामी लगभग 20 हजार श्लोक - प्रमाण टीका ही लिख पाए थे,
68 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय