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स्थावर : एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर कहते हैं, उनके पृथिवी आदि पाँच भेद हैं।
त्रस : दोइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों को त्रस कहते हैं। 9. योग मार्गणा अधिकार मन-वचन-काय के निमित्त से होनेवाली क्रिया से आत्मा में जो विशेष शक्ति उत्पन्न होती है और जो कर्मों के ग्रहण में कारण है, उसे योग कहते हैं। योग के तीन भेद हैं-मनोयोग, वचनयोग और कर्मयोग।
10. वेद मार्गणा अधिकार
वेद तीन हैं-स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक वेद । मूल वेद के दो भेद हैं-द्रव्यवेद और भाववेद।
• द्रव्यवेद : शरीर में स्त्री या पुरुष का चिह्न होता है-लिंग, योनि आदि वह द्रव्यवेद है। द्रव्यवेद तो शरीर के साथ रहता है।
• भाववेद : रमण की भावना का नाम भाववेद है।
सब नारकी नपुंसक वेदी होते हैं । एकेन्द्रिय से लेकर चौइन्द्रिय पर्यन्त सब तिर्यंच भी नपुंसक वेदी होते हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय से लेकर सब तिर्यंचों में तीनों वेद होते हैं। मनुष्यों में भी तीनों वेद होते हैं। देवों में स्त्री-पुरुष दो ही वेद होते हैं।
11. कषाय मार्गणा अधिकार क्रोध, मान, माया और लोभ को कषाय कहते हैं। प्रत्येक के चार-चार भेद दृष्टान्त द्वारा जीवकाण्ड में कहे हैं। 1. क्रोध के चार भेद हैं-पत्थर की रेखा, पृथ्वी की रेखा, धूलि की रेखा
और जल की रेखा के समान। अर्थात् जैसे ये रेखाएँ होती हैं, जो मिटती नहीं है या देर-सबेर मिटती हैं, उसी तरह क्रोध कषाय है। 2. मान के चार भेद हैं-पर्वत के समान, हड्डी के समान, काष्ठ के समान
और बेंत के समान। विनम्र न होने का नाम मान है । पर्वत कभी नमता नहीं है और बेंत झट नम जाता है। इसी तरह मान कषाय के चार प्रकार हैं।
मानी व्यक्ति भी नमता नहीं है। 3. माया के चार प्रकार हैं-बाँस की जड़, मेढ़े के सींग, बैल का मूतना और खुरपा के समान। जैसे-इनमें टेढ़ापन कभी अधिक कभी कम होता है;
गोम्मटसार :: 59