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1. सामायिक संयम : मैं सभी प्रकार के सावद्ययोग का त्याग करता हूँइस प्रकार सर्वसावधयोग के त्याग को सामायिक संयम कहते हैं।
2. छेदोपस्थापना संयम : व्रत को छेद करके अर्थात् दो-तीन आदि भेद करके व्रतों के धारण करने को छेदोपस्थापना संयम कहते हैं।
3. परिहारविशुद्धि संयम : तीस वर्ष तक इच्छानुसार भोग-भोगकर सामायिक संयम और छेदोपस्थापना संयम को धारण करके जिसने तप विशेष के द्वारा ऋद्धि को प्राप्त कर लिया है, ऐसा जीव परिहारविशुद्धि संयम को धारण करता है। इस प्रकार संयम को धारण करके जो उठना-बैठना एवं भोजन करना आदि सब क्रियाओं में प्राणियों की हिंसा से दूर होता है, उसके परिहार-विशुद्धि संयम होता है।
4. सूक्ष्म साम्पराय संयम : जिसकी कषाय सूक्ष्म होती है, उसे सूक्ष्मसाम्पराय कहते हैं। सामायिक और छेदोपस्थापना संयम को धारण करनेवाले साधु जब अत्यन्त सूक्ष्म कषायवाले हो जाते हैं, तब उनके सूक्ष्म साम्पराय संयम होता है।
5. यथाख्यात संयम : सम्पूर्ण कषायों का अभाव होने पर यथाख्यात संयम होता है।
6. संयतासंयत संयम : जो संयत (संयमी) और असंयत (असंयमी) दोनों होते हैं, वे संयतासंयत होते हैं।
7. असंयत संयम : संयम से रहित जीव को असंयत संयम कहते हैं। 14. दर्शन मार्गणा अधिकार जो देखता है, जिसके द्वारा देखा जाता है या देखना मात्र दर्शन है। इसके चार भेद हैं
• चक्षु दर्शन : चक्षु के द्वारा पदार्थों के सामान्य ग्रहण को चक्षुदर्शन कहते
• अचक्षु दर्शन : शेष इन्द्रियों और मन से जो प्रतिभास होता है, उसे अचक्षु दर्शन कहते हैं।
• अवधि दर्शन : परमाणु से लेकर अन्तिम स्कन्ध पर्यन्त मूर्त पदार्थों के प्रत्यक्ष आभास को अवधिदर्शन कहते हैं।
• केवलदर्शन : लोक-अलोक को प्रकाशित करनेवाला केवलदर्शन है, जो केवलज्ञान के साथ होता है। शेष दर्शन ज्ञान के पूर्व होते हैं।
गोम्मटसार :: 61