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वही स्थिति माया की है। माया भी कभी कम कभी अधिक होती है। 4. लोभ के चार प्रकार हैं-कृमिराग के समान, गाड़ी के चक्के के मल के
समान, शरीर के मल के समान और हल्दी के रंग के समान। जैसे-जैसे इनका रंग गाढ़ा-हलका होता है, वैसे ही लोभ भी घटता-बढ़ता रहता है। इन चारों कषायों के कारण ही मनुष्य चारों गतियों में भटकता रहता है।
12. ज्ञान मार्गणा अधिकार जो जानता है, उसे ज्ञान कहते हैं । ज्ञान के आठ भेद हैं और वह ज्ञान दो प्रकार का है-प्रत्यक्ष और परोक्ष। परोक्ष के दो भेद हैं-मतिज्ञान और श्रुतज्ञान । प्रत्यक्ष ज्ञान के तीन भेद हैं-अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवलज्ञान। प्रारम्भ के तीन ज्ञान मिथ्या ज्ञान (कुज्ञान) भी होते हैं।
1. मति-अज्ञान : इन्द्रियों से होनेवाले मिथ्यात्व सहित ज्ञान को मतिअज्ञान कहते हैं।
2. श्रुत-अज्ञान : मति-अज्ञान के साथ होनेवाले विशेष ज्ञान को श्रुतअज्ञान कहते हैं।
3. विभंगज्ञान : मिथ्यात्व सहित अवधिज्ञान को विभंग ज्ञान कहते हैं।
4. मतिज्ञान : इन्द्रियों और मन से जो पदार्थ का ग्रहण होता है, उसे मतिज्ञान कहते हैं।
5. श्रुतज्ञान : मतिज्ञानपवूक जो विशेष ज्ञान होता है, वह श्रुतज्ञान है। जीवकाण्ड में श्रुतज्ञान के भेदों का विस्तार से कथन ज्ञानमार्गणाधिकार में है।
6. अवधिज्ञान : मूर्त पदार्थों को इन्द्रियादि की सहायता के बिना साक्षात् जाननेवाले ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं।
7. मनःपर्ययज्ञान : मन में स्थित पदार्थ को जो जानता है, वह मनःपर्ययज्ञान
है।
8. केवलज्ञान : त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थों को साक्षात् जाननेवाले ज्ञान को केवलज्ञान कहते हैं। 13. संयम मार्गणा अधिकार व्रतों को धारण करना, समितियों का पालन करना, कषायों को रोकना, दण्डों का त्याग करना और इन्द्रियों को जीतने का नाम संयम है। 'सं' अर्थात् सम्यक् रूप से यम को संयम कहते हैं । संयम के सात भेद हैं । यथा60 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय