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2. हरिवंशपुराण की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें यादवकुल और उसमें
उत्पन्न हुए दो शलाकापुरुषों का चरित्र विशेष रूप से वर्णित है-एक __ बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ और दूसरे नवें नारायण कृष्ण। ये दोनों चचेरे भाई
थे।
3. भगवान नेमिनाथ का जीवन आदर्श और त्याग का जीवन है। वे हरिवंश
गगन के प्रकाशमान सूर्य थे। इनके जीवनचरित्र को पढ़कर हमें आदर्श
जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। 4. हरिवंश पुराण के अन्त में भगवान महावीर के निर्वाण का प्रसंग दीपावली
के प्रचलित होने का भी वर्णन है, जिसे पढ़कर दीपावली मनाने का
वास्तविक कारण श्रावक जान सकते हैं। 5. इस ग्रन्थ में साहित्यिक सुषमा के साथ सृष्टिविद्या, धर्मशास्त्र, तत्त्वज्ञान,
षद्रव्य और पंचास्तिकाय आदि का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। 6. आचार्य जिनसेन ने अपने समय की राजनीतिक परिस्थितियों का भी
चित्रण किया है।
ग्रन्थ की कथा ढाई हजार वर्ष पुरानी बात है। भगवान महावीर का समवसरण राजगृही नगर में आया। सारी प्रजा के साथ राजा श्रेणिक भी धर्मलाभार्थ समवसरण पहुँचे। वहाँ सभी ने भगवान महावीर की दिव्यध्वनि सुनी। इसी समय समवसरण में एक मुनिराज को केवलज्ञान हो गया। राजा श्रेणिक ने गौतम गणधर से उन मुनिराज के विषय में पूछा। गौतम गणधर ने बताया कि वह हरिवंश में उत्पन्न सुविख्यात राजा जितशत्रु है । राजा श्रेणिक ने गौतम गणधर से हरिवंश का सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाने का अनुरोध किया। गौतम गणधर ने इस प्रकार कहा
यह विश्व षड्द्रव्यात्मक है। इसके दो विभाग हैं-लोकाकाश और अलोकाकाश। अलोकाकाश में मात्र आकाश द्रव्य है और लोकाकाश में जीवादि छह द्रव्य हैं । अलोकाकाश अनन्त है और लोकाकाश के तीन भाग हैं-उर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक। ऊर्ध्वलोक में ज्योतिषलोक और स्वर्गादि आते हैं, अधोलोक में नरक आते हैं। मध्यलोक के अन्तर्गत असंख्यातद्वीपसमुद्रों में एक भरतक्षेत्र है। भरतक्षेत्र में जिस प्रकार एक माह में कृष्ण और शुक्ल पक्ष होते हैं, उसी प्रकार एक कल्प में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी दो काल होते हैं। दोनों कालों में छह विभाग होते हैं । अवसर्पिणी के छह विभाग ये हैं-सुखमा-सुखमा,
हरिवंशपुराण :: 45