________________
रुक्मिणी का गिरनार पर्वत पर विधिपूर्वक विवाह हो गया । रुक्मिणी पटरानी बन गयी। सत्यभामा उससे जलने लगी ।
एक बार श्रीकृष्ण के पास दुर्योधन का दूत आया । उसने श्रीकृष्ण को निवेदन किया कि आपकी इन दो रानियों में जिसके पहले पुत्र हो, वह दुर्योधन की पुत्री स्वीकार करेगा। दोनों रानियों के पुत्र एक साथ हुए, किन्तु पहले सूचना रुक्मिणी के पुत्र की मिली, इसलिए वही पहला पुत्र माना गया; किन्तु उसे पूर्वजन्म का वैरी एक विद्याधर उठाकर ले गया और एक बड़ी भारी शिला के नीचे दबा कर चला गया। थोड़ी ही देर में एक कालसंवर नाम का अन्य विद्याधर आया । वह उस बालक को अपने घर ले गया ।
इधर रुक्मिणी के पुत्रहरण के समाचार ने कोहराम मचा दिया । नारदजी पुत्र के समाचार जानने के लिए सीमन्धर भगवान के पास गये। वहाँ से कालसंवर के घर गये और विस्तृत समाचार लेकर लौटे । रुक्मिणी को बता दिया कि उसे सोलह वर्ष बाद उसका पुत्र मिल जावेगा । वह सीमन्धर भगवान के वचनों पर विश्वास कर धैर्य धारण करे ।
1
समय बीतता रहा। एक बार समुद्रविजयादि दस भाइयों के भानजे पाँचों पांडव द्वारकापुरी आए। सभी ने इनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया । सोलह वर्ष पूरे होने पर रुक्मिणी का पुत्र ( प्रद्युम्न) भी द्वारका लौट आया। इस प्रकार अब द्वारका में साढ़े तीन करोड़ कुमार रहने लगे ।
एक बार की बात है । कृष्ण की बहिन ( यशोदा की पुत्री जो कृष्ण के बदले में लाई गयी थी) दर्पण में अपना रूप देख रही थी । यों तो वह अनुपम सुन्दरी थी, किन्तु अपनी नाक चपटी देखकर उसे संसार - शरीर-भोगों से वैराग्य हो गया। उसने जिनदीक्षा धारण कर ली। एक बार यह ध्यानस्थ थी कि डाकुओं ने इसे वनदेवी समझकर उससे वरदान माँगा कि आज उन्हें बहुत सारा धन मिलना चाहिए। संयोग से इनकी इच्छा पूरी हो गयी। वे लौटकर अपनी 'वनदेवी' के पास आए, परन्तु वह नहीं मिली । उसे सिंह खा गया था । ' वनदेवी' के स्थान पर बिखरा हुआ खून और मात्र तीन अँगुलियाँ मिलीं । डाकुओं ने वहाँ त्रिशूलधारिणी देवी - प्रतिमा बना दी और उसे भैंसे आदि मानकर खूब खून पिलाया (स्वयं ने पीया) । यह दुनिया उसे आज भी देवी / माता आदि के रूप में मानती चली आ रही है । अहा मूढ़ता !
शनैः-शनैः श्रीकृष्ण आदि यादवों के पराक्रम की गाथा जरासन्ध तक पहुँच गयी। वह सेना लेकर यादवों से लड़ने आ गया और अन्ततः अपने ही चक्र से
हरिवंशपुराण :: 51