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रचनाएँ : आचार्य नेमिचन्द्र आगमशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। इनकी निम्नलिखित रचनाएँ प्रसिद्ध हैं–( 1 ) गोम्मटसार ( 2 ) त्रिलोकसार ( 3 ) लब्धिसार (4)
क्षपणासार ।
ग्रन्थ का महत्त्व
1. जैन धर्म के जीवतत्त्व और कर्मसिद्धान्त की विस्तार से व्याख्या करनेवाला महान ग्रन्थ है— गोम्मटसार ।
2. यह ग्रन्थ सिद्धान्तशास्त्र एवं आगम शास्त्र के रूप में मान्य है I
3. यह षट्खण्डागम के समान महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है ।
4. धवला और जयधवला की रचना के पश्चात् गोम्मटसार ग्रन्थ को सिद्धान्तविषयक विद्वत्ता का मापदण्ड मान लिया गया और इसके पठनपाठन का प्रचार सर्वत्र किया गया ।
5. ग्रन्थ की रचना षट्खण्डागम और पञ्चसंग्रह के आधार पर ही हुई है । 6. इस ग्रन्थ पर अनेक कन्नड़, संस्कृत और हिन्दी आदि भाषाओं में टीकाएँ भी लिखी गयी हैं। यथा
जीवतत्त्वप्रदीपिका : नेमिचन्द्र जी
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मन्दप्रबोधिका : अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती
कन्नड़कृति : केशव वर्णी
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका ( वचनिका) : पण्डितप्रवर टोडरमलजी
ग्रन्थ का मुख्य विषय
यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है
जीवकाण्ड : इस भाग में 434 गाथाएँ हैं ।
कर्मकाण्ड : इस भाग में 962 गाथाएँ हैं ।
गोम्मटसार जीवकाण्ड
गोम्मटसार षट्खण्डागम की परम्परा का ग्रन्थ है । यह एक संग्रह ग्रन्थ है । उसके प्रथम भाग जीवकाण्ड का संकलन मुख्य रूप से पंचसंग्रह के जीवसमास अधिकार तथा षट्खण्डागम के प्रथम खण्ड जीवट्ठाण के सत्प्ररूपणा और द्रव्य प्रमाणानुगम अधिकारों की धवला टीका के आधार पर किया गया है। जीवसमास
गोम्मटसार :: 55