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और जीवकाण्ड दोनों विषय एक ही हैं।
मंगलाचरण : ग्रन्थ के मंगलाचरण में आचार्य ने तीन लोक के पदार्थों को जाननेवाले, इन्द्रों के समूह, चक्रवर्ती तथा गणधरों के द्वारा वन्दनीय वर्धमान जिनेन्द्र को नमस्कार किया है। उसके बाद चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार किया है ।
जीवकाण्ड का मुख्य विषय गुणस्थान और मार्गणास्थान है।
गुणस्थान
गुणस्थान का एक नाम जीवसमास भी है। जिसमें जीव भले प्रकार रहते हैं, उसे जीवसमास कहते हैं। जीव गुणों में रहते हैं, इसलिए उन्हें गुणस्थान कहते हैं ।
परिभाषा
1. मिथ्यात्व से लेकर अयोग केवली पर्यन्त जीव के जो परिणाम विशेष हैं, वे गुणस्थान हैं।
2. मोह और मन-वचन-काय की प्रवृत्ति के निमित्त से उत्पन्न जीव के अन्तरंग परिणामों को गुणस्थान कहते हैं ।
3. आत्मिक गुणों के विकास की कृत्रिम अवस्थाओं का नाम गुणस्थान है।
1. गुणस्थान अधिकार
गुणस्थान धवला या सिद्धान्त-ग्रन्थों की देन है । सिद्धान्त-ग्रन्थों की दो शैलियाँ हैं- ओघ (संक्षेप) और आदेश (विस्तार) । गुणस्थान के कथन को ओघ (संक्षेप) कहते हैं, मार्गणाओं के कथन को आदेश (विस्तार) कहते हैं । गुणस्थान 14 होते हैं
1. मिथ्यादृष्टि
3. सम्यग्मिथ्यादृष्टि 5. संयतासंयत
2. सासादन सम्यग्दृष्टि 4. असंयत सम्यग्दृष्टि
6. प्रमत्तसंयत
8. अपूर्वकरण
7. अप्रमत्तसंयत
9. अनिवृत्तिकरण
11. उपशान्तमोह
13. सयोगकेवली
इस अधिकार में प्रत्येक गुणस्थान के स्वरूप का वर्णन विस्तार से किया है।
56 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
10. सूक्ष्मसाम्पराय
11. क्षीणमोह
14. अयोगकेवली