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हरिवंशपुराण
राष्ट्र के कुछ महापुरुषों के चरित्र व्यापक रूप से लोकप्रियता के विषय बन गये हैं। उनमें से राम और कृष्ण के चरित्र विशेष महत्त्वपूर्ण रहे हैं। जैन और जैनेतर साहित्य में गत दो-ढाई हजार वर्षों से अगणित पुराण, काव्य, नाटक और कथानक इनके आधार पर लिखे गये हैं।
जैसे-वैदिक परम्परा में रामायण और महाभारत प्रमुख ग्रन्थ रहे हैं, उसी प्रकार जैन साहित्य में पद्मपुराण और हरिवंशपुराण प्रमुख ग्रन्थ माने जाते हैं। ग्रन्थ के नाम का अर्थ हरिवंश कृष्ण व कौरव-पाण्डवों के वंश का नाम है । हरिवंशपुराण में इस वंश का विस्तृत वर्णन आया है, अत: इसका नाम हरिवंशपुराण है। ग्रन्थकार का परिचय हरिवंशपुराण आचार्य जिनसेन (प्रथम) की अप्रतिम संस्कृत काव्यकृति है। वे बहुश्रुत विद्वान थे। आचार्य जिनसेन का समय ई. सन् 748 से 818 तक का माना जाता है। इनके गुरु का नाम कीर्तिषेण और दादागुरु का नाम जिनसेन था। ये पुन्नाट संघ के थे। आचार्य जिनसेन द्वारा रचित हरिवंशपुराण जैन साहित्य में अपना प्रमुख स्थान रखता है। इस ग्रन्थ की रचना ई. सन् 783 में हुई थी। ग्रन्थ का महत्त्व 1. हरिवंशपुराण के स्वाध्याय से पता चलता है कि यह मात्र पुराण ही नहीं है,
अपितु पुराण के साथ-साथ जैन वाङ्मय के विविध विषयों का अच्छा निरूपण इसमें किया गया है। यह जैन साहित्य का एक अनुपम ग्रन्थ और उच्चकोटि का महाकाव्य है।
44 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय