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सीता का जीव प्रतीन्द्र नरक में जाकर लक्ष्मण और रावण के जीव को सम्बोधित करता है। धर्मोपदेश देता है। उनके दुख से दुखी होकर उनको नरक से निकालने का प्रयत्न करता है। नरक से निकलकर वह केवली राम की शरण में जाता है और दशरथ, लक्ष्मण, रावण और भामंडल आदि के आगे के भवों के बारे में पूछता है।
तब राम केवली कहते हैं कि दशरथ आनत स्वर्ग में देव हुए हैं, सुमित्रा, कैकया, सुप्रभा, कौशल्या, जनक तथा कनक ये सभी सम्यग्दृष्टि आनत स्वर्ग में अतुल्य विभूति के धारक देव हैं । लवण और अंकुश अविनाशी पद प्राप्त करेंगे। भामंडल का जीव आहार दान के प्रभाव से देवकुरु में उत्तम आर्य हुआ है।
रावण का जीव सत्यव्रत के प्रभाव से मनुष्य भव पाकर दुर्लभ तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध करेगा अर्थात् भविष्यकाल के तीर्थंकर होंगे। सीता का जीव उक्त तीर्थंकर का ऋद्धिधारी 'श्रीमान' नाम का प्रथम गणधर होगा। लक्ष्मण का जीव तीर्थंकर और चक्रवर्ती पद को प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त करेगा।
इस प्रकार मनुष्य को पुण्य और पाप का अन्तर जानकर पाप को छोड़कर पुण्य का संचय करना चाहिए। जो श्रावक पद्मपुराण का शान्तभाव से अध्ययन करेगा, निश्चय ही उसे सातिशय पुण्य का संचय होगा।
पद्मपुराण :: 43