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इधर भामंडल को जब ज्ञात होता है कि सीता मेरी सगी बहन है, तो उसे अपने कुविचारों पर बहुत घृणा होती है, वह मिथिला जाकर सबसे क्षमा ग्रहण करता है, राजा जनक भी सपरिवार अपने पुत्र से मिलकर आनन्द अनुभव करते हैं। और अपने भाई को राज्य सौंपकर भामंडल के साथ विजयार्ध चले जाते हैं ।
इधर राजा दशरथ सर्वभूतहित मुनिराज के द्वारा अपने पूर्व भवों का वर्णन सुनकर राज्य से विरक्त हो जाते हैं, और राम के राज्याभिषेक की घोषणा करते हैं।
परन्तु भरत की माँ कैकया अपना पूर्वस्वीकृत दो वर ' भरत के लिए राज्य ' और 'राम के लिए वनवास' माँगती है । राजा दशरथ असमंजस में पड़ जाते हैं । परन्तु राम दृढ़ता के साथ कहते हैं कि आप भरत को राज्य देकर अपने सत्यवचन की रक्षा कीजिए। इसी बीच भरत संसार से विरक्त होकर दीक्षा के लिए जाने लगते हैं, तब राजा दशरथ और राम उसे समझाकर रोकते हैं और भरत का राज्याभिषेक करते हैं ।
राम भी माता-पिता से आज्ञा लेकर वन जाने के लिए उद्यत होते हैं । सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ हो जाते हैं । राम-लक्ष्मण के साथ प्रजा के अनेक लोग भी साथ होते हैं, लेकिन सबको सोता छोड़कर राम, लक्ष्मण और सीता तीनों ही दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ते हैं। राजा दशरथ भी सर्वभूतहित मुनिराज के पास दीक्षा धारण कर लेते हैं। कौशल्या और सुमित्रा पति एवं पुत्र वियोग से बहुत दुखी होती हैं। भरत और कैकया राम और लक्ष्मण के पास जाकर उनसे वापिस चलने का बहुत आग्रह करते हैं, परन्तु सब व्यर्थ सिद्ध होता है । भरत निराश हो वापिस आकर राज्य का पालन करते हैं और द्युति भट्टारक के समक्ष प्रतिज्ञा करते हैं, “मैं राम के आने पर उनके दर्शन मात्र से ही मुनिदीक्षा ग्रहण कर लूँगा।"
इधर राम-लक्ष्मण चित्रकूट वन को पारकर अवन्ती देश में पहुँचे। वहाँ पर राजा वज्रकर्ण और सिंहोदर राजा से मित्रता करते हैं और म्लेच्छ राजाओं को आज्ञाकारी बनाकर बालिखिल्य को बन्धन- मुक्त करते हैं । वन विहार करतेकरते जब सीता थक जाती है और तीव्र वर्षा के कारण तीनों ही असहाय हो जाते हैं, तब यक्षपति अपने अवधिज्ञान से उन्हें बलभद्र और नारायण जानकर एक सुन्दर नगरी की रचना करते हैं और उसमें सबको ठहराते हैं । वर्षाकाल बीतने के बाद राम वैजयन्तपुर जाते हैं । वहाँ पर राजा पृथिवीधर और रानी इन्द्राणी की पुत्री वनमाला के साथ लक्ष्मण का विवाह होता है । क्षेमाञ्जलिपुर के राजा शत्रुदमन की पुत्री जिनपद्मा के साथ भी लक्ष्मण का विवाह होता है ।
36 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय