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स्वप्नों का फल ‘चक्रवर्ती पुत्र होगा' ऐसा जानकर वह बहुत प्रसन्न हुई । उसी समय व्याघ्र का जीव जो कि सर्वार्थसिद्धि में अहमेन्द्र था, वहाँ से निकलकर यशस्वती के पुत्ररत्न के रूप में उत्पन्न हुआ। वह भुजाओं से पृथ्वी का आलिंगन करता हुआ उत्पन्न हुआ, इसलिए निमित्त ज्ञानियों ने 'यह पुत्र चक्रवर्ती होगा' ऐसी घोषणा की, और समस्त भरत क्षेत्र के अधिपति होनेवाले उस पुत्र को 'भरत' नाम से पुकारा ।
यशस्वती महादेवी से भरत सहित निन्यानवे पुत्र और ब्राह्मी नाम की पुत्री उत्पन्न हुई ।
बाहुबली का जन्म
आनन्द पुरोहित का जीव, जो पहले महाबाहु था और फिर सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ था, वह वहाँ से च्युत होकर भगवान ऋषभदेव की द्वितीय पत्नी सुनन्दा के देव के समान परम पराक्रमी बाहुबली नाम का पुत्र और सुन्दरी नाम की पुत्री हुई। बलवान युवा बाहुबली चौबीस कामदेवों में पहले कामदेव हुए। भरत ने क्रम से बालक और कुमार अवस्था के बाद नेत्रों को आनन्द देनेवाली युवावस्था प्राप्त की ।
भगवान ने ब्राह्मी और सुन्दरी दोनों पुत्रियों को अंकविद्या और लिपिविद्या सिखाई, तथा सभी पुत्रों को अर्थशास्त्र, नृत्यशास्त्र और गन्धर्वशास्त्र आदि अनेक
शास्त्राध्ययन कराया ।
इस प्रकार अनेक प्रकार के भोगों का अनुभव करते हुए भगवान ने बीस लाख पूर्व वर्षों का कुमारकाल पूर्ण किया ।
उस समय कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने के बाद, बिना बोये धान से लोगों की आजीविका होती थी, परन्तु कालक्रम से जब वह धान भी नष्ट हो गये, तब भगवान वृषभदेव ने अवधिज्ञान से विदेहक्षेत्र की व्यवस्था चालू कर दी । असि, मसि, कृषि, विद्या, शिल्प और वाणिज्य इन छह कार्यों से लोगों की आजीविका चलने लगी। कर्मभूमि प्रारम्भ हो गयी। उस समय की सारी व्यवस्था भगवान वृषभदेव ने अपने बुद्धिबल से की थी । इसलिए यही आदिपुरुष, ब्रह्मा, विधाता आदि नामों से सम्मानित हुए। भगवान ने हा, मा और धिक् इन तीनों दण्डों की व्यवस्था की ।
इस प्रकार राज्य करते हुए भगवान के 83 लाख वर्ष व्यतीत हो गये । एक दिन भगवान वृषभदेव को नीलांजना अप्सरा का नृत्य देखते-देखते
महापुराण (आदिपुराण और उत्तरपुराण) :: 25