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पद्मपुराण
ग्रन्थ के नाम का अर्थ 'पद्म' का अर्थ यहाँ राम है। राम का एक नाम 'पद्म' भी था और जैन पुराणों में उनका यही नाम अधिक प्रचलित है। इस ग्रन्थ में राम का चरित्र-चित्रण होने से इसे पद्मपुराण कहते हैं।
जैन परम्परा में राम को त्रेसठ शलाका पुरुषों में वासुदेव के रूप में गिना जाता है। इनके जीवन-चरित्र से सम्बन्धित बड़े-बड़े पुराण भी रचे गये हैं।
ग्रन्थकार का परिचय रामकथा सम्बन्धी सबसे प्राचीन जैन पुराण संस्कृत में रविषेण कृत पद्मपुराण, प्राकृत में विमलसूरि कृत पउमचरियं (पद्म-चरित) और अपभ्रंश में स्वयंभू कृत 'पउमचरिउ' हैं। यहाँ पर संस्कृत में रविषेण द्वारा रचित पद्मपुराण का परिचय दे रहे हैं। आचार्य रविषेण ने वि.सं. 734 में इस ग्रन्थ की रचना पूर्ण की थी। पौराणिक चरित-काव्य-रचयिता के रूप में रविषेणाचार्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनका समय वि.सं. 840 से पूर्व माना जाता है।
ग्रन्थ का महत्त्व (1) 'रामकथा' भारतीय साहित्य में सबसे अधिक प्राचीन, व्यापक, आदरणीय
और रोचक विषय रहा है। सभी लोग राम को 'आदर्श महापुरुष' मानते हैं। राम कथा' प्रायः सभी धर्मों में प्रचलित और सम्माननीय है।
___ (2) रामकथा के विषय में जैन परम्परा में 'पद्मपुराण' और 'पउमचरिय' सर्वप्रथम रचित ग्रन्थ माने जाते हैं। ये परवर्ती अनेक पुराणों, कथाओं, नाटकों
और एकांकी आदि के आधारभूत ग्रन्थ रहे हैं। 32 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय