________________
सम्पादकीय
भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबन्ध न्यासी साहू श्री अखिलेश जैन बड़े ही साहित्यानुरागी सत्पुरुष हैं । उनकी बड़ी तीव्र भावना थी कि जैन धर्म के प्रमुख ग्रन्थों से आज की आम जनता को परिचित कराया जाए। जैन ग्रन्थ ज्ञान-विज्ञान के अद्भुत भंडार हैं और उनकी बातें आज हजारों वर्षों बाद भी बड़ी वैज्ञानिक और जीवनोपयोगी सिद्ध हो रही हैं । परन्तु वे ग्रन्थ प्राकृत - संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं और जो उनके अनुवाद मिलते हैं वे भी पुरानी भाषा - शैली में होने से जटिल से ही हैं, जिससे आज की पीढ़ी उनकी ओर आकर्षित नहीं होती है, उन्हें ठीक से समझ भी नहीं पाती है, अतः उन जैन ग्रन्थों का परिचय ऐसी सरल- - सुबोध भाषा-शैली में लिखा जाना चाहिए कि उसे आज का हर आदमी आसानी से समझ सके । श्रीमान साहूजी ने अपनी भावना अनेक बार मेरे सामने रखी और मुझसे बहुत आग्रह किया कि इस कार्य को मैं करूँ, परन्तु व्यस्ततावश मैं यह कार्य नहीं कर पर रहा था। आखिरकार उन्होंने श्रीमती डॉ. सरिता जैन दोशी को इस कार्य के लिए भारतीय ज्ञानपीठ में नियुक्त किया। मुझे बहुत प्रसन्नता है कि सरिता जैन ने परिश्रम करके इस कार्य को सम्पन्न किया ।
मैंने इस कार्य को प्रारम्भ से लेकर अन्त तक लगातार देखा है, इसकी पूरी योजना बनाई है और इसमें अनेक बार संशोधन-सम्पादन के कार्य किये हैं । सरिता जैन के साथ बैठकर इसमें यत्र-तत्र शब्दों और वाक्यों के परिवर्तन ही नहीं, पूरे के पूरे अध्याय के पुनर्लेखन तक के प्रयास किये हैं । हमने बहुत कोशिश की है कि यह कृति साहूजी के स्वप्नों के अनुरूप बनाई जाए जिससे पाठक सरल शब्दों को देखकर आसानी से इस कृति का अध्ययन कर सकें और आसानी से समझ सकें ।
श्रीमान साहूजी ने भी अपना बहुमूल्य समय निकालकर इस पूरी कृति को और समझा है । जहाँ-कहीं कठिन शब्द आ रहे थे, उनको सरल अर्थ में
पढ़ा
ग्यारह