Book Title: Pramapramey Author(s): Bhavsen Traivaidya, Vidyadhar Johrapurkar Publisher: Gulabchand Hirachand DoshiPage 10
________________ ७८. अविशातार्थक ७९. अपार्थक ८०. अप्राप्तकाल ८१. हीन ८२. अधिक ८३. अन्य निग्रहस्थान ८४. निग्रहरयानों का उपसंहार ८५. छल आदि का प्रयोग ८६. वाद ८७, व्याख्यावाद ८८. गोष्ठीवाद ८९. विवादवाद ९०. वाद के चार अंग ९१. सभापति ९२. सभ्य ९३. पक्षपात की निन्दा ९४. वादी और प्रतिवादी ९५. तात्त्विक वाद ९६. प्रातिभवाद ९७. नियतार्थवाद ९८. परार्थनवाद १९. पत्र का लक्षण १००. पत्र के अंग १०१. पत्र का स्वरूप ६९ १०२. पत्र के विषय में जय और पराजय १०३. वाद और जल्प १०४. चार कथाएं १०५. तीन कथाएं १०६. वाद के लक्षण का खण्डन ९४ १०७. जल्प के लक्षण का खण्डन ९६ १०८. वाद और जल्प में भेद नही ९७ १०९. क्या वाद का साधन ७६ प्रमाण है ? ९९ द का साधन ७९ तर्क है ? १०. १११. क्या वाद का सिद्धान्त अविरुद्ध होता है ! १०२ ११२. वाद के पांच अवयव १०३ ११३. वाद और अनुमान ८४ में भेद ११४. पांच अवयवों का दूसरा अर्थ ११५. वाद में पक्ष और प्रतिपक्ष १०६ ८७ ११६. नल्प के लक्षण का खण्डन १०७ ८८ ११७. वितण्डा के लक्षण का खण्डन १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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