Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१६]
प्राकृतपैंगलम्
[ १.३७
$ ४८९; किंतु श्री भायाणी इसका सम्बन्ध सं० म्ना से जोड़ना अधिक ठीक समझते हैं-दे० संदेशरासक भूमिका पृ. ९ पादटि. २ ।
राउल - ८ राअउल ८ राजकुल ('ज' तथा 'क' का लोप 'राअ' में 'आ' 'अ' की संधि; तु० अवधी० राउर; राज० रावलो ) ।
अह दुगण विआरो,
मित्त मित्त दे रिद्धि बुद्धि अरु मंगल दिज्जइ,
मित्त भिच्च थिरकज्ज जुज्झ णिब्भअ जअ किज्जइ । मित्त उसे कज्जबंध हि पुणु पुणु छिज्जइ,
मित्त होइ जइ सत्तु गोत्तबंधव पीडिज्जइ ॥
अरु भिच्च मित्त सव कज्जहो भिच्च भिच्च आअत्ति चल,
सव भिच्च उआसे धणु णसइ भिच्च वइरि हाकंद फल ॥३७॥ [छप्पअ]
आसीण जड़ मित्त कज्ज किछु मंद दिखावइ, उआसीण जड़ भिच्च सव्व आअत्ति चलावइ । उआसीण आसे मंदभल किछु णहि देक्खिअ,
आसीण जइ सत्तु गोत्त वइरिउ कइ लक्खिअ ॥ जइ सत्तु मित्त हो सुण्णफल सत्तु भिच्चहो घरणिणस,
पुणु सत्तु उसे धण णसइ सत्तु सत्तु णाअक्क खस ॥३८॥ [ छप्पअ] ३७-३८. द्विगण का विचार
I
मित्र - मित्र का योग ऋद्धि, वृद्धि तथा मंगल प्रदान करता है। मित्र भृत्य स्थिरकार्य करते हैं, तथा युद्ध में निर्भय जय प्राप्त करते हैं । मित्र- उदासीन का योग कार्य में बारबार प्रतिबंध (विघ्न) उपस्थित करता है । यदि मित्र - शत्रु का योग हो तो सगोत्र तथा बांधवो को पीड़ित करता है । भृत्य - मित्र के योग में सब कार्य सफल होते हैं । भृत्य-भृत्य T के योग में सफलता का काल बढ़ जाता हैं । भृत्य - उदासीन के योग में धन का नाश होता हैं। भृत्य - वैरी के योग में क्रन्दन रूप फल होता है. (घर में हाहाकार - रुदन होता है) ।
उदासीन - मित्र के योग में कार्य मंदगति से होता है । उदासीन - भृत्य के योग में कार्य-काल अत्यधिक लंबा चलता है । उदासीन - उदासीन का योग मंद है, इसमें कोई शुभ फल नहीं दिखाई देता । उदासीन - शत्रु के योग होने पर गोत्र की व्यक्तियों से वैर होता है । शत्रु-मित्र में शून्य फल होता है । शत्रु- भृत्य में गृहिणी का नाश होता है । शत्रु-उदासीन में धन का नाश होता है । तथा शत्रु शत्रु में नायक का पतन होता है ।
टिप्पणी- दिज्जइ, किज्जइ, छिज्जइ, पीडिज्जइ ८ दीयते, क्रियते, क्षीयते, पीड्यते (कर्मवाच्य रूप) दे० § ३६. ३७. O. अथ गणद्वयविचारः । रिद्धि-D. O ऋद्धि, बुद्धि-0.'न प्राप्यते' । थिरकज्ज - B. C. D. 'कव्व । जुज्झ - C. D. K. जुझ्झ । णिब्भअ—C. D. K. णिम्भअ । किज्जइ -0. दिज्जइ । पुणु पुणु - A. D. पुण पुण। छिज्जइ -0. किज्जइ । 'पीडिज्जइ - C. पीडिज्जै । अरु भिच्च मित्त-0. मित्ते । आअत्ति - A. आअति, B. आइति, C. अत्ति, D. आयत्ति । चल-D. जल । सव भिच्च उआसे - D. अरु भिच्च । वइरि - C. भिच्चवरे, D. N. भिच्चवैरि । फल -0. पल । ३८. उआसीण - A. उआसिण । कज्ज-B. कज्जु । मंद-C. D. बंध | दिखावइ - C. K. देखावइ । कज्ज किछु मंद दिखावड़ -0. कज्जवंध किछु देखावा । आअत्ति-D. आयत्ति, O आइति । चलावइ - B. चलावेइ; C. अनावई। मंदभल - C. मन्द नाअ भण। किछु -A किछुइ । हिC न, O ण । दक्खिअ - C देखिअ, D. देष्षिअ O. देक्खइ । वइरिउ - A. B. वैरीअ. C. वैरिउ, D. N वैरिअ, O वरि । कइ - C. कई । लक्खिअ -C. लेखिखअ, D लेविअ, O. लक्खड़ । हो-A, होइ । सुण्ण -C. सुन्न । घरणि-C. घरिनि, O. घरिणि । णस - A. णसइ, C. D. नस । धण - A. O. धणु ।
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