Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१४] प्राकृतपैंगलम्
[१.३२ टिप्पणी-एत्ताई 2 एतानि 'एतत्' के नपुंसक लिंग ब०व० में महाराष्ट्री 'एआइ', अर्धमागधी-जैनमहा० 'एया.' तथा 'एयाणि' शौरसेनी 'एदाइँ' (मृच्छकटिक १२८.४), मागधी 'एदाई' (मृच्छकटिक १३२.१६) रूप संकेतित किये गये हैं । दे० पिशेल $ ४२६ पृ. ३०२ । तगारे ने भी इन्हीं रूपों का संकेत किया है । दे० तगारे ६ १२४ पृ. २३२ । इससे स्पष्ट है कि 'एत्ताइँ' शुद्ध प्राकृत-अपभ्रंश रूप न होकर अर्धतत्सम रूप है, जिसपर संस्कृत 'एतानि' का प्रभाव पाया जाता है। इसका विकास क्रमिक न होकर 'एतानि' से ही सीधा 'त' का द्वित्व कर तथा 'न' का लोप कर उसके स्थान पर 'इ' को सानुनासिक बनाकर हुआ है । इसे हम यों स्पष्ट कर सकते हैं ।
→एआइ, एआई (महा.) → एयाइँ (जैनमहा०, अर्धमागधी) ।
→*एआणि→एयाणि (जैनमहा०) एतानि
→एदाइँ (शौर०-मागधी) →एत्ताइँ, (प्राकृतपैंगलम् वाला अवहट्ट रूप) संखं फुल्लं काहल रवं असेसेहिं होंति कणअलअं ।
रूअं णाणाकुसुमं रसगंधं सद्दपरमाणं ॥३२॥ [गाहा] ३२. शंख, फूल, (पुष्प), काहल, रव, कनक, लता, रूप तथा पुष्पों के जितने भी नाम हैं, तथा रस, गंध, शब्द ये सब लघु के प्रमाण है, अर्थात् लधु के ये सब नाम होते हैं । अह वण्णगणा,
मो तिगुरू णो तिलहू लहुगुरुआईं यभा ज मज्झगुरू ।
मज्झलहू रो सो उण अंतगुरू तो वि अंतलहुएण ॥३३॥ [उद्गाथा] - ३३. अब वर्णिक छंदो में उपयोगी गणों का संकेत करते हैं :
त्रिगुरु मगण (5 5 5) है, त्रिलघु नगण (।।।), आदिलघु यगण (1 5 5), आदिगुरु भगण (5 ।।), मध्य गुरु जगण (। 5 1), मध्यलघु रगण (ऽ । 5), अंतगुरु सगण (।। 5), अंतलघु तगण (5 5 1)।
टिप्पणी-यभा-इसका कई हस्तलेखों में 'जभा' रूप मिलता है, निर्णयसागर में 'यभा' रूप है, मैंने यहाँ 'यभा' पाठ ही लिया है। इसका कारण यह है कि 'जभा' पाठ लेने पर ' यगण' तथा 'जगण' का-जो दो भिन्न स्वरूप गण है-भेद स्पष्ट न हो सकेगा। - अह गणदेवता,
पुहवीजलसिहिकालो गअणं सूरो अ चंदमा णाओ ।
गण अट्ठ इट्ठदेओ जहसंखं पिंगले कहिओ ॥३४॥ [गाथा] ३४. गणों के देवता
पिंगल ने मगण, णगण, भगण, यगण, जगण, रगण, सगण, तथा तगण के इष्टदेव क्रम से पृथ्वी, जल, अग्नि, .. काल, आकाश, सूर्य, चंद्रमा तथा नाग माने हैं । ३२. फुलं काहल-A. काहलं, C. फुलकाहालं, D. फुल्लकहाअल, N. फुल्लकहालं । असेसिहि-A. O. असेसेहि, C. D. N. 'असेसेहिं। होति-0.होति । कणअलअ-B. C. N. K. कणअलअं0. कलअलअं (=कलकल:); D. करअलअं (=करतलं) । सद्दपरमाणं-D. सद्दप्पमाणं, K. सद्द परसाणं (=शब्द: स्पर्शः), B. "परिसाण । ३३. ०. अथ वर्णवृत्तानां गणः । लहू-D. लहु । लहुगुरुआई-A.C. लहुगुरुआइ, D. N. लहुगुरुआई । यभा-A. D. N. यभौ, B. यभो, C. जभौ, K. जभा-0. अभा । मज्झगुरु-A. C. D. मझ्झगुरु । मज्झलहू-A.C. D. मझ्झलहू । तोवि-D. तोव्वि । ३४. कालो-A. आलो, C. D. कालो, 0. वाओ । गअणं-B. N. पवणो, K. पवणं । अट्ठ इट्ठ-A. "इअट्ट', C. अठ्ठ इठ्ठ', D. O. अट्ट इट्ट। ।
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