Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१.२८ ]
मात्रावृत्तम्
२७. सर्वलघु के नाम
सर्वलघु पहले विप्र कहलाता है; दूसरे जाति शिखरों से युक्त पंचशर । चार लघु वाला चतुष्कल द्विजवर परमोपाय (कवि के लिए उत्कृष्ट उपाय ) होता है ।
टिप्पणी- सरपंच ८ पंचशर ( प्राकृत में समास में कभी कभी पदों का विपर्यय हो जाता है । 'प्राकृते पूर्वनिपातानियमात् ') ।
अह पंचकलाणं आइलहुअस्स णामाइँ
सुणरिंदअहिअकुंजरुगअवरुदंताइ दंति अह मेहो । एरावइतारावइगअणं झंपं त लंपेण ॥ २८ ॥ [ गाथा ]
२८. पंचकल आदि लघु के नाम
सुनरेंद्र, अहित, कुंजर, गजवर, दंत, दंती, मेघ, ऐरावत, तारापति, गगन, झम्प तथा लंप ।
अह मज्झलहुअस्स (णामाइँ)
पक्खिविराडमइंदहवीणाअहिजक्खअमिअजोहलअं ।
सुप्पण्णपण्णगासणगरुड विआणेहु मज्झलहुएण ॥ २९ ॥ [ उद्गाथा ]
२९. मध्यलघु के नाम
पक्षी, विडाल, मृगेन्द्र, वीणा, अहि, यक्ष, अमृत, जोहल, सुपर्ण, पन्नगाशन, गरुड-ये मध्यलघु पंचकल के नाम
जानें ।
[ १३
टिप्पणी-मइंदह ८ मृगेन्द्र ('ऋ' का इ होने पर तथा ग तथा रेफ का लोप होने पर मिद रूप बनेगा । इसी 'मिद' से पदादि अक्षर के 'इ' का 'अ' कर तथा 'ए' का 'इ' के रूप में दुर्बलीकरण कर 'मइंद' रूप बनेगा । 'ह' समासान्त पद के अंत में कर्ता० ब० व० का द्योतक है।) अमिअ ८ अमृत; सुप्पण्ण ८ सुपर्ण ('प' का द्वित्व अपभ्रंश की विशेषता है ।)।
विआणेहु < विजानीत ('वि' उपसर्ग के कारण √ जाण धातु के 'ज' का मध्यग होने से लोप हो गया है; 'हु'
आज्ञा म०पु०ब०व० ) ।
बहुविविहपहरणेहिं पंचकलओ गणो होइ ।
अरहतुरंगपाइक एहु णामेण जाण चउमत्ता ॥ ३० ॥ [ विग्गाहा ]
३०. पंचकल गण नाना प्रकार के अनेक आयुधों के नामवाला होता है (अनेक आयुधों (प्रहरणों) के जो जो नाम हैं, वे सब पंचकल के नाम हैं) । चतुर्मात्रिक गण के गज, रथ, तुरंग, पदाति ( पैदल ) ये नाम जानने चाहिए ।
टिप्पणी- जाण ८ जानीहि (/जाण+ शून्य (०) प्राकृत अपभ्रंश में शून्य आज्ञा म०पु०ए० व० का चिह्न है । इसका विकास संस्कृत धातु के लोट् म० पु० ए० व० के 'अ' (/पठ् + अ = पठ) से हुआ है ।)
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ताडंकहारणेउरकेउरओ होंति गुरुभेआ ।
सरमेरुदंडकाहल लहुआ होंति एत्ताइँ ॥ ३१ ॥ [ गाहू
३१. ताटंक, हार, नूपुर, केयूर, ये गुरु (एकगुरु) के नाम है। शर, मेरु, दंड, काहल, ये लघु (एकलघु)
नाम हैं ।
२८. सुरिंदO. सुरेंद। कुंजरू -0. कुंजर । गअवरु-0 गअवर। दंताइदंति - B: 'दंती, D. 'दति । एरावइ - B. एरावअ, D. झंपत्त लंपेण, O 'लप्पेण । । २९. मइंदह - N मअंदह, D. सुप्पण्णु, C. O सुपण । विआणेहु-B विजाणेह, C. विआठ्ठ । । पाइक्क - B. पाअक्क O पाइक । जाण -B. जाणे । एहु -0. केऊरा । एत्ताई - B. C. एत्ताई, A. D. एत्ताई, K. O एत्ताइ । अस्मिन् पूर्वं च 'लघुनामान्याहेति' वाक्यद्वयं 'C' हस्यलेखे प्राप्यते ।
D. ऐरावअ । झंपं त लंपेण - B. 'तलेपेण, C. मप्पंत लंपेण, मयंदह, B. मइंदो । अमिअ-B. अमल, C. अमअ । सुप्पण्ण - B. ३०. पहरणेहिं -C. पहरणेहि, D. पहरणेहिं । गअरह - D गयर एहू । ३१. ताडंक -C. D. K. O तालंक। केउरओ-D पद्ये प्रथमार्धस्य पूर्वं 'गुरुणा (ना) मान्याहे' ति उत्तरार्धस्य
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