Book Title: Prakrit Vidya 2001 10 Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain Publisher: Kundkund Bharti Trust View full book textPage 9
________________ में आया, वैसा ध्वज फहराया। भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाणोत्सव की पृष्ठभूमि में मार्च 1973 में पुरानी दिल्ली के वैदवाड़ा' की जैन-धर्मशाला में आयोजित बैठक में पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने प्रमाणपूर्वक जैनध्वजा को 'पंचरंगी' प्रमाणित किया। महाकवि विबुध श्रीधर ने जैनध्वज के पंचवर्णी होने का उल्लेख किया है "काराविवि णाहेयहो णिकेउ, पविइण्णु पंचवण्णं सुकेउ। पइँ पुणु पइट्ट पविरइय जेम पासहो चरित्तु जइ पुणु वि तेम।।" --(पासणाहचरिउ 1-9) अर्थ :- हे नट्ठल साहू! आपने भगवान् आदिनाथ का निकेत (दि० जैन मन्दिर) बनवाकर, कराकर तथा उस पर पंचवर्ण वाली सुन्दर सुकेतु (महाध्वजा) फहराकर उसकी प्रतिष्ठा कराई है। अब यदि भगवान् पार्श्वनाथ के चरित की भी रचना करावें, तो उससे आपको आत्मसुख (सन्तोष) होगा। इन पाँच वर्गों के सम्बन्ध में वास्तुशास्त्र के ग्रंथ 'मानसार' में निम्नानुसार उल्लेख मिलता है-- “स्फटिकश्वेत-रक्तं च पीत-श्याम-निभं तथा। एतत्पञ्चपरमेष्ठी पञ्चवर्ण-यथाक्रमम् ।। -(55/44) अर्थ:- स्फटिक के समान श्वेतवर्ण, लालवर्ण, पीलवर्ण, श्याम (हरा) और नीला (काला) -ये पाँच वर्ण क्रमश: पञ्चपरमेष्ठी के सूचक हैं। - इनमें 'श्याम' पद से हरित (हरे) और 'निभं' पद से नीले या काले वर्ण का अभिप्राय लेना कुछ लोगों को संदिग्ध प्रतीत होता है; किन्तु यह सत्य है। 'श्याम' पद आजकल साँवले या हल्के काले वर्ण का सूचक रूढ़िवशात् माना जाने लगा है, किन्तु मूलत: यह हरितवर्ण का ही सूचक शब्द है। इसीलिए हरियाली से युक्त पृथ्वी को 'शस्य-श्यामला' कहा जाता। इसीप्रकार निभं' शब्द को 'नभ' या आकाश का समानार्थी माना गया है— 'निभं नभ:' -(कवि कालिदास, ऋतुसंहारम्, 2/11)। तथा आकाश के लिए 'नीलाम्बर' शब्द का प्रयोग मिलता है। वस्तुत: रात्रि में जैसे आकाश का वर्ण गहरा नीला होता है, वही गहरा नीला वर्ण यहाँ निभं' पद से अभिप्रेत है। गहरा नीला होने से रात्रि में आकाश काला प्रतीत होता है, संभवत: इसीलिए निभं' पद को काले वर्ण का सूचक मान लिया गया है। इनमें श्वेत' वर्ण 'अरिहंत-परमेष्ठी' का सूचक है, स्फटिक निर्मलता की प्रतीक होती है, तो अरिहंत भी चार घातिया कर्मों का क्षय करके निर्मलस्वरूप में स्थित हैं, अत: 'स्फटिक-श्वेत' वर्ण को उनका सूचक बताया गया है। 'लाल' रंग पुरुषार्थ का प्रतीक है, तो 'सिद्ध-परमेष्ठी' ने परमपुरुषार्थ मोक्ष की सिद्धि की है, अत: उन्हें लालवर्ण से संसूचित किया गया है। पीला' रंग वात्सल्य को बताता है, तो 'आचार्य-परमेष्ठी' संघ को वात्सल्यभाव से अनुशासित कर सन्मार्ग में मर्यादित रखते हैं; अत: उन्हें पीलेवर्ण से संकेतित किया गया है। 'हरा' रंग समृद्धि की सूचना देता है; उपाध्याय-परमेष्ठी' संघ को ज्ञान से समृद्ध करते हैं; अत: यह उनका सटीक परिचायक है। तथा गहरा 'नीला' या काला रंग साधु-परमेष्ठी के प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2001 007Page Navigation
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