________________
कतई असम्भव है । बौद्ध ग्रन्थ 'दीघनिकाय' में उस समय अजातशत्रु का शासन मगध में होना लिखा है— 'तेन खो पन समयेन राजा मागधे अजातसत्तु वेदेहिपुत्त वज्जी अभियातुकामो होति' इसका अर्थ है कि उस समय मगध का राजा अजातशत्रु कुणिक था, और वह वैदेहीपुत्र के वज्जिप्रदेश पर चढ़ाई करना चाहता था ।
-
इतिहास साक्षी है कि बुद्ध के काल तक वैशाली की गरिमा अद्वितीय थी, फिर अजातशत्रु कुणिक ने उसे पददलित किया । तथा समुद्रगुप्त द्वितीय के काल में भी वैशाली को लूटा गया । प्रथम चीनी यात्री फाह्यान के समय तक वैशाली की कुछ गरिमा बची हुई थी, जबकि ह्वेनसांग के समय वैशाली खण्डहर के रूप में बदल गई थी । भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाणोत्सव के सुअवसर पर प्रकाशित होम एज टू वैशाली' नामक वैशाली अभिनन्दन - ग्रन्थ में अनेकों विश्वविख्यात इतिहासकारों, पुरातत्त्वविदों एवं भारतीय संस्कृति के विशेषज्ञों ने गहन - 3 न-अनुसंधानपूर्वक यह सिद्ध किया है कि वैशाली के चार भाग थे और उसके एक भाग का नाम कुण्डपुर या क्षत्रिय - कुण्डग्राम था। इसी क्षत्रिय-कुण्डग्राम में राजा सिद्धार्थ के घर भगवान् महावीर बालक वर्धमान के रूप में जन्मे और उन्होंने अद्वितीय पुरुषार्थ द्वारा परमात्म- पद प्राप्त कर सत्य, अहिंसा आदि सिद्धान्तों के उत्कृष्ट स्वरूप का सम्पूर्ण देश में अपनी दिव्यध्वनि के माध्यम से प्ररूपण किया ।
पूजन-पाठ-प्रदीप के लेखक पं. हीरालाल जी जैन 'कौशल' ने इस पुस्तक के पृ.सं. 305 पर भगवान् महावीर का जन्मस्थान 'क्षत्रिय - कुण्डग्राम' (कुंडलपुर - वैशाली) बिहार प्ररूपित किया है। कुछ लोगों को न जाने किस भ्रमवश विदेह - प्रान्त के कुण्डपुर को मगध-प्रान्त के नालन्दा के पास स्थित 'बड़गाँव' में कुण्डलपुर होने का आभास हो गया और वहाँ प्रभूत- धनराशि की किसी महत्त्वाकांक्षी परियोजना बन जाने के कारण उसकी निष्फलता के भय से वे इस ज्वलंतसत्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। मेरा उनसे अनुरोध है कि इस देश के प्रत्येक प्रान्त में एक नामवाले कई ग्राम-नगर पहले भी थे, और अब भी हैं; अत: मात्र नामकरण की समानता के आधार पर मगध प्रान्त के नालन्दा के निकटवर्ती कुण्डलपुर (बड़गाँव) नामक ग्राम को विदेह के कुण्ड के रूप में कल्पित करना धर्मानुरागी जनता को गुमराह करना है । वहाँ पर जीर्णोद्धार के कार्य हों, इससे मुझे कोई एतराज नहीं है; किन्तु उस जगह को महावीर की 'जन्मभूमि 'कुण्डपुर' के रूप में धुआंधार प्रचारित कर धन-संग्रह का माध्यम बनाया जाये यह बात अवश्य चिन्ता के योग्य है। ऐसे लोग, जो इतिहास और भूगोल के ज्ञान को तुच्छ मानते हैं, वे ऐतिहासिक नगरी कुण्डपुर के भौगोलिक अस्तित्व के बारे में अपना अभिमत ही क्यों दे रहे हैं? जो व्यक्ति जिस विषय का ज्ञाता नहीं हो, उसे उस विषय के बारे में वक्तव्य नहीं देना चाहिये, अन्यथा उसकी अज्ञता प्रकट हो जायेगी। और यदि प्रामाणिक जानकारी के बिना कोई वक्तव्य दे भी दिया है, तो सप्रमाण तथ्यों की जानकारी मिल जाने पर उसे ईमानदारी के साथ स्वीकार कर लेना चाहिये। किन्तु ऐसा देखा जा रहा है कि उस क्षेत्र के जीर्णोद्धार के नाम पर जो विपुल धनराशि के संग्रह की महत्त्वाकांक्षी योजना शुरू की है, उसके ठप्प पड़ जाने
प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
15
www.jainelibrary.org