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पैशाची भाषा किसी प्रदेश विशेष की भाषा नहीं थी, अपितु भिन्न-भिन्न प्रदेशों में रहने वाली किसी जाति विशेष की भाषा थी, जिस कारण इसका प्रचार कैकय, शूरसेन और पांचाल प्रदेशों में अधिक हुआ है। ग्रियर्सन इसे पश्चिम पंजाब और अफगानिस्तान की भाषा मानते हैं । पैशाची में वर्ण-परिवर्तन बहुत होता है; यथा-गकनं<गगनम्, मेखो> मेघः, राचा<राजा, पंचा<प्रज्ञा, सतनं< सदनम्, कच्चं<कज्जम् आदि।
प्राकृत और आधुनिक भाषाएँ
प्राकृत का विकास जनभाषा से हआ है, इसीलिए स्वभावतः वह अपना संबंध उससे सर्वथा विच्छिन्न नहीं कर सकी है। दूसरी ओर, उसके मुकाबले, संस्कृत का ढाँचा उत्तरोत्तर व्याकरणिक नियमों में जकड़ता गया और वह जनभाषा से छिन्न हो गयी। यद्यपि प्राकृत ने अपनी विकास-यात्रा मेंनये रूप धारण किये किन्तु साहित्य में अधिक प्रयुक्त होने के कारण वह भी रूढ़ हो गयी और परिणामस्वरूप एक नयी भाषा अस्तित्व में आयी जिसे अपभ्रंश कहा गया । जो भी हो, अप श को प्राकृत का ही एक रूपान्तर माना जाता है किन्तु चंकि कोई भाषा किसी भाषा को जन्म नहीं देती अतः अधिक तर्कसंगत यही है कि प्राकृत को कारणभूत मानते हुए भी इसकी विभाषाओं को ही अपभ्रंश की जननी माना जाए। इस तरह अपभ्रंश जनभाषा की नयी आकृति है जिसकी परवर्ती अवस्थाएँ देशी, अवहट्ठ आदि नामों से जानी जाती हैं।
प्राकृत और अपभ्रंश में जितनी भाषागत समानता है, उससे कहीं अधिक साम्य है उसमें प्रयुक्त साहित्यिक विधाओं में और उसके माध्यम से प्रतिपादित जीवन-दर्शन में । इस तरह हम देख पाते हैं कि प्राकृत ने अपभ्रंश को नाना भाँति प्रभावित किया हैं और अपभ्रंश ने प्राकृत की दाय को पूरी निष्ठा से आधुनिक भारतीय भाषाओं को सौंपा है । वस्तुतः इस तरह, प्राकृत आधुनिक भारतीय भाषाओं की पूर्ववर्ती अवस्था ही है।
प्राकृत सीखें : १२
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