Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. ख, घ, थ, ध, फ, भ>ह : मुख:>मुहो, मेघः>मेहो, नाथः> णाहो, बधिरः>बहिरो,. मुक्ताफलं>मुत्ताहलं, सभा>सहा । ट>ड : घट:>घडो; ठ>ढ : पठति>पढइ; ड>ल तडागं>तलायं; न>ण : वनं.>वणं; ब>व : शिबिका> सिविया; श>स : देशः>देसो; ष>स : कषायः>कसाओ । ४. प्राकृत में हलन्त पद नहीं है अतः उनका लोप हुआ है या वे परिवर्तित हुए हैं; जैसे-पश्चात् >पच्छा, यत्>जं, शरद्>सरओ। ५. विसर्ग के परिवर्तन इस प्रकार हैं--नर:>णरो, मुनिः>मुणी, गुरुः> गुरू, रामा:>रामा । संयुक्त व्यंजन-परिवर्तन बोलने की सुविधा-सरलता की दृष्टि से प्राकृत में व्यंजनों का प्रयोग बहुत कम होता है । संस्कृत के संयुक्त व्यंजन प्राकृत में सरलीकृत होकर आये हैं । यह सरलीकरण समीकृत व्यंजन अथवा स्वरभक्ति (शब्द के बीच में स्वरागम) के कारण हुआ है । इस संदर्भ में निम्न तथ्य ध्यान देने योग्य १. प्राकृत में शब्दों के आरंभ में प्रायः संयुक्त व्यंजन नहीं मिलते; यथा--श्रमण>समणोः, ध्वजः>धओ, त्यागी>चाई, स्पर्श> फंसो । २. मध्यवर्ती संयुक्त व्यंजनों में कहीं प्रथम व्यंजन का लोप और द्वितीय का द्वित्व, तथा कहीं द्वितीय का लोप एवं प्रथम का द्वित्व हो जाता है। इस तरह का कोई अटल नियम नहीं है। कुछ संयुक्त व्यंजन-रूप इस प्रकार हैं... (क) शब्दः>सद्दो, मुक्तः>मुक्को, अग्निः>अग्गी, पक्व:> पक्को, अद्य>अज्ज, मध्यं>मज्झं। .. __(ख) श, ष, स, युक्त संयुक्त (जुड़वाँ) व्यंजनों में छ का आदेश एवं .. द्वित्व हुआ है, यथा>अप्सरा>अच्छरा, उत्साहः> उच्छाहो; : ख का आदेश एवं द्वित्व-शिक्षा>सिक्खा, भिक्षा>भिक्खा ; झ का आदेश एवं द्वित्व-क्षीयते>झिज्जइ। ... प्राकृत सीखें : १७ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74