Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाठ ६ : नपुंसकलिंग शब्द और उनके प्रयोग । वहि प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग के स्वरान्त शब्दों में विभक्ति-चिह्न अनुस्वार' जोड़ा जाता है तथा बहुवचन में इं, इ,णि विभक्ति चिह्न जोड़े जाते हैं । तृतीया विभक्ति से आगे नपुं. शब्दों के मभी रूप पुल्लिग शब्दों के समान ही चलते हैं। कुछ प्रमुख शब्दरूप इस प्रकार हैं वण (वन), नपुं. संज्ञा एकवचन बहुवचन वणं वणाई, वणाइँ, वणाणि बी. वणं वणाई, वणा', वणाणि त. वणेण वणस्स वणाणं वणत्तो, वणाओ वणाहितो . वणस्स वणाणं वणम्मि वणेसु सं. हे वण हे वणाई शब्द-कोश अब्भं (मेघ), कमलं (कमल), मिणबिम्बं (जिनबिम्ब) नाणं (ज्ञान), दाणं (दान), जोव्वणं (यौवन), वागरणं (व्याकरण), समायरणं (समाचरण), आयासं (आकाश), आसणं (आसन), दव्वं (द्रव्य), भयं (भय), समोसरणं (समवसरण), सिद्धालयं (सिद्धालय), वेमणस्स (वैमनस्य), वेरमणं (निवृत्ति), वेहवं (वैभव), संठाणं EFEE प्राकृत सीखें : ३५ For Private and Personal Use Only

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