Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अईव अणन्तर ईसि कओ असई इह कहं जत्थ जाव तए चिअ, चेअ दुओ सइ —अतीव --पश्चात् -थोड़ा इ तारिस जेत्तिअं - कहाँ से, - अनेक बार -यहाँ - कैसे -- जहाँ --जब तक -तब -- और भी -दो प्रकार -- एक बार --कोई - उसके समान - जितना केत्तिअं - कितना www.kobatirth.org अव्यय अण्णा अहा एत्थ कह दाणि एयावया जइ णवर तहा जओ पुहं नउणा सणियं जारिस Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -अन्यथा -- जिस प्रकार —यहाँ कहाँ - इस समय - इतना कब —जो - परन्तु, केवल —उस तरह —क्योंकि For Private and Personal Use Only --अलग -- - फिर से नहीं —धीरे-धीरे -- जिसके समान —उतना -- इतना | तेत्तिअं एत्तिअं विशेषण प्राकृत वाक्यों में कई प्रकार के विशेषणों का प्रयोग होता है। विशेषण के लिंग, वचन और विभक्ति प्रायः विशेष्य के अनुसार होते हैं । = कुछ गुणवाचक विशेषण होते हैं; यथा-1 - किसणी - काला, पीतो = पीला, रत्तो = लाल, उत्तमो = श्रेष्ठ, निउणो = निपुण; आदि । कुछ सार्वनामिक विशेषण होते हैं; यथा — यह, वह, वे ये, इन, उन आदि । पु., स्त्री, नपुं. में इनके भिन्न रूप होते हैं (इन्हें हम सर्वनाम के पाठ में पढ़ चुके हैं) । प्राकृत सीखें: ६५

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74