Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan
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३. शब्द के मध्य में आये असंयुक्त क्, ग्, च्, ज्, त्, द्, प्, य, व् प्रायः
लुप्त हैं तथा शेष अ अथवा आ का य अथवा या हो गया है; यथाबालक:>बालओ, नगरम् >नयरं, आचार>आयार; पूजा>
पूया; माता>माया; कदली>कयली; रिपु>रिउ । ४. शब्द-मध्य के असंयुक्त रु, च्, थ्, ध्, फ्, म का प्रायः ह हुआ है
यथा-मुख>मुह; लघु>लहु; शपथ>सपह; मधुकर>महुयर;
मुक्ताफल > मुत्ताहल । . . ५. शब्द-मध्य असंयुक्त न का ण हुआ है; यथा-नयन >नयण । ६. अनुस्वार का समीपस्थ व्यंजन अपरिवर्तित है; यथा-संघ>संघ;
शंकर>संकर; प्रसंग>पसंग । ७. पदान्त व्यंजन लुप्त हैं तथा अन्तिम म् का अनुस्वार हुआ है; यथा
पश्चात् >पच्छा; तस्मात्>तम्हा ।
परिशिष्ट २ : प्राकृत व्यंजनों में सामान्यतः होने वाले परिवर्तन क्त-क्क : मुक्त-मुक्क ड्ग-ग्ग : खड्ग-खग्ग क्य-क्क : वाक्य-वक्क
द्ग-ग्ग : मुद्ग-मुग्ग (मूंग) क्र-क्क : चक्र-चक्क
ग-रग : वर्ग-वग्ग क्ल-क्क : विक्लव-विक्कव ल्ग-ग्ग : वल्ग-वग्ग
(भयभीत, उद्विग्न) घ्न-ग्ध : विघ्न-विग्ध क्व-क्क : पक्व-पक्क .... घ्र-ग्घ . व्याघ्र-वग्ध त्क-क्क : उत्कण्ठा-उक्कंठा । द्घ-ग्घ : उद्घाटित-उग्घा डिअ र्क-क्क : अर्क-अक्क (सूर्य) घ-ग्घ : अर्घ-अग्घ (मल्य) ल्क-क्क : उल्का-उक्का च्य-च्च : अच्युत-अच्चुअ ख-क्खः : दु:ख-दुक्ख
त्य-च्च : सत्य-सच्च क्ष-क्ख . लक्षण--लक्खण त्व-च्च : ज्ञात्वा-णच्चा (जानकर) ख्या-क्ख : व्याख्यान-वक्खाण थ्य-च्च : तथ्य-तच्च क्ष्य-क्ख : लक्ष्य-लक्ख .. च-च्च : अर्चना-अच्चणा क्ष-क्ख: उत्क्षिप्त-उक्खित्व क्ष-च्छ : दक्ष-दच्छ त्ख-क्ख : उत्खात-उक्खाय क्ष्म-च्छ : लक्ष्मी-लच्छी
७० : प्राकृत सीखें
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