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परिशिष्ट १ : प्राकृत वर्णमाला स्वर : ह्रस्व - अ, इ, ए; दीर्घ-आ, ई, ऊ, ए, ओ; अनुस्वारव्यंजन : क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ (कण्ठ्य )
च वर्ग - च् छ् ज् झ् अ (तालव्य) ट वर्ग - ठ् ड् ढ् ण
(मूद्धन्य) त वर्ग - त् थ् द् ध् न्
(वन्त्य ) प वर्ग - प् फ् ब् भ् म् . (ओष्ठ्य ) अर्धस्वर : य् (तालव्य), र (मूर्द्धन्य), ल (दन्त्य), व (दंतौष्ठ्य) ऊष्माक्षर : स् (दंत्य), ह (कण्ठ्य)
प्राकृत में सामान्यतः होने वाले स्वर-परिवर्तन १. भारतीय आर्य भाषा के प्राय: सभी स्वर अन्य स्वरों में परिवर्तित
होते हैं; यथा-अ>आ, इ, ई, उ, ए, ओ (प्रकटम्>पाअडं, मृदंग>
मुइंगो, हर:>हीरो)। २. ऋ, ऋ, ल, ऐ और औ का सर्वथा लोप । ३. ऋ के स्थान पर अ, इ, उ, ए, और ओ आते हैं; यथा-तृणम् >तणं,
कृषि>इसी । ४. ऐ और औ के स्थान पर ए और ओ प्रयुक्त हैं, यथा-नीचस्>नीचअं,
पौर:>पउरो। ५. ह्रस्व स्वर प्राय: सुरक्षित हैं। ६. विसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ है, किन्तु यदि अ के बाद वह आया है तो
अ सहित उसका ओ हो गया है; यथा-सर्वतः>सव्वओ; पुरत:>
पुरओ; यत:>जओ। ७. स्वर-रहित एकाकी व्यंजन प्रयुक्त नहीं हैं। यथा-राजन् >राय;
सरित्>सरिया; तमस्>तमो। __ असंयुक्त या सरल व्यंजनों में सामान्यतः होने वाले परिवर्तन १. आरंभ के श्, ए, स् में परिवर्तित हैं; यथा-शकट:>सगडो। २. अर्द्धस्वर य का ज हुआ है; यथा-युवराज>जुवराज । .........
प्राकृत सीखें ६९
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