Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नपुं. संख्यावाची विशेषण कई प्रकार के होते हैं। एक संख्या शब्द तीनों लिंगों में भिन्न रूप वाला है; यथाएकवचन बहुवचन एगो, एओ एगे, एक्के स्त्री. एगा, एआ एगाओ, एक्काओ एगं, एअं एगाणि, एआणि शेष सभी संख्यावाची शब्द तीनों लिंगों में समान होते हैं और उनके बहुवचन में ही रूप बनते हैं। दोण्णि, विणि =दो; तिणि तीन; चत्तारो, चउरो=चार; पंच=पाँच; छ=छ; मत्त-=सात; अट्ठ-आठ; णव=नी; दह, दस दस। एगारह, वारह, तेरह, उद्दह, पण्णरह, सोलह, सत्तरह, अट्ठारह, एगूणवीसा, वीसा आदि संख्याएँ प्राकृत में प्रयुक्त होती हैं। क्रमवाचक संख्याओं के रूप इस प्रकार हैंपढमं पहला वीओ,दुइयो --दूसरा, तइओ,तच्चो --तीसरा, चउत्थो -चौथा, पंचमो --पाँचवाँ सट्ठो -छठा, सत्तयो --सातवाँ अट्टयो -आठवां, नवमो ---नौवाँ दहमो,दसमो -दसवाँ, इत्यादि । तुलनात्मक विशेषण इस प्रकार हैंपिअ (प्रिय) पिअअर (प्रियतर) पिअअम (प्रियतम) (सबसे प्रिय) कणीअस कणिठं (सबसे छोटा) गरु गरीअस (सबसे बड़ा) धणी धणिअर धणिअम (सबसे धनी) वाक्य-प्रयोग उत्तमो बालओ पढइ (अच्छा लड़का पढ़ता है), रत्तो कुक्कुरो धावइ (लाल कुत्ता दौड़ता है), इमा बाला गिहं गच्छइ (यह लड़की घर अप्प गरिट्ट प्राकृत सीखें : ६६ For Private and Personal Use Only

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