Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस+तं हसिउं, हसेउं (हंसकर) भण+तूण=भणिऊण, भणेऊण (पढ़कर) कर+इत्ता=करित्ता (करके) इत्यादि । प्राकृत में कुछ भूतकालिक कृदन्त अनियमित रूप में भी प्रयुक्त हुए हैं तथा कुछ ध्वनि-परिवर्तन के आधार पर ; यथा.: काउं, कटु, काऊण (कर्) करके ; घेत्तुं, घेत्तूणं, घेत्तुआण (गह) ग्रहण कर; दठ्ठ, दळूण, दळुआणं (दरिस्) देखकर ; मोत्तुं, मोत्तूणं (मुंच) त्यागकर; किच्चा, किच्चाण (कृत्वा) करके; नच्चा, नच्चाण (ज्ञात्वा) जानकर ; बुज्झा (बुद्ध्वा) जानकर; वंदिता (वंदित्वा) वन्दना करके; सोच्चा, (श्रुत्वा) सुनकर ; आहच्च (आहत्त्वा) आघात करके; परिन्नाय (परिज्ञाय) जानकर; चइत्ता (त्यक्त्वा) छोड़कर। कडं (कृतम्) किया हुआ; मडं (मृतम्) मरा हुआ; अक्खायं (आख्यातम्) कहा हुआ; आणत्तं (आज्ञप्तम् ) आज्ञा किया हुआ; सुयं (स्मृतम्) स्मरण किया हुआ; सुयं (श्रुतम्) सुना हुआ इत्यादि। वाक्य-प्रयोग पियंवदा जणणीए भणिया (प्रियंवदा ने माँ से कहा); तीए राया तुट्ठो, दिन्नो वरो (राजा उससे प्रसन्न हुआ (और उसे) वर दिया); बालिआओ विज्जालयत्तो घरं गमिदा (बालिकाएँ शाला से घर गयीं); अम्हेहिं पच्चूसे पहाणं करिओ (हम लोगों के द्वारा प्रात: स्नान किया गया); लछिमणेण मेहणादं मरिओ (लक्ष्मण के द्वारा मेघनाद मारा गया); सो निवस्स गेहे भोयणाय गओ (वह राजा के घर भोजन के लिए गया); अस्स सरूवं मए पचक्खं दिट्ट (इसका स्वरूप मैंने प्रत्यक्ष देखा है); सज्जणो सत्थवयणं सोच्चा सहइ (सज्जन व्यक्ति शास्त्रवचन को सोचकर बोलता है); मणूसा पुण्णं किच्चा देवा हुंति (मनुष्य पुण्य कर के देव होते हैं); इंदो महावीरं वंदित्ता थुणइ (इन्द्र महावीर की वन्दना कर स्तुति करता है); जेण इमा पुहवी हिडिऊण प्राकृत सीखें : ५६ For Private and Personal Use Only

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