Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इसी प्रकार भूत, विधि, आज्ञा आदि के प्रत्यय जोड़कर भाव एवं कर्मवाचक धातुरूप बनाये जाते हैं । कुछ अनियमित धातुओं का प्रयोग भी प्राकृत में प्राप्त होता है; यथा भाववाच्य Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीसइ ( दी सिज्जइ ) – देखा जाता है । = बुच्चइ ( वुच्चिज्जइ ) == कहा जाता है। भण्णते ( भण्णाविइ) = कहलाया जाता है । णज्जते (णज्जा विइ) = जाना जाता है । सुन्वते ( सुव्वा विइ) = सुना जाता है, इत्यादि । वाक्य-प्रयोग प्राकृत सीखें: ६० तुए हसिज्जइ ( तुम्हारे द्वारा हँसा जाता है); बालेण रत्तीए जग्गिज्जइ ( बालक द्वारा रात में जगा जाता है ) । कर्मवाच्य तेण भणिज्जइ गंथो ( उसके द्वारा ग्रन्थ पढ़े जाते हैं ) ; कुंभारेण घडो कुणीअइ ( कुम्हार के द्वारा घड़ा बनाया जाता है); रामेण अप्पाणी झाइज्जई (राम के द्वारा आत्मा का ध्यान किया जाता है ) । For Private and Personal Use Only

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