________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हसाविअव्वं, हसावणिज्जं, हसावणीयं ( हँसाने योग्य, हँसाना चाहिए ) 1 अनियमित विध्यर्थ कृदन्त के कुछ रूप
कज्जं करने योग्य
काअव्वं = कर्त्तव्य करने योग्य भोत्तव्वं = भोगने योग्य गुज्झं == छुपाने योग्य
गेज्झं ग्रहण करने योग्य भव्वं = होने योग्य दट्ठब्वं = देखने योग्य
अवज्जं नहीं बोलने योग्य
हेत्वर्थ कृदन्त
अभीष्ट कार्य के लिए कर्त्ता जब दो क्रियाएँ एक साथ करता है तब हेत्वर्थ कृदन्त की क्रिया प्रयुक्त होती है। मूल धातु में उं (तुं ), तए प्रत्यय लगाने से हेत्वर्थ कृदन्त के रूप बनते हैं। धातु के 'अ' को विकल्प से 'इ' अथवा 'ए' हो जाता है; यथा
हस + उं हसिउं, हसेउं ( हँसने के लिए )
कर + त्तर = करितए, करेत्तए ( करने के लिए)
प्रेरक हेत्वर्थ कृदन्त में 'आवि' प्रत्यय और जुड़ जाता है; यथाभणाविरं ( पढ़ाने के लिए) ।
भण् + आवि + उं
कर्त्त सूचक कृदन्त
८
लगाने से क्रिया विशेष के कर्त्ता का बोध
धातु में 'इर' प्रत्यय कराया जाता है; जैसे
भम् + इ = भमिरो ( भ्रमण करने वाला, भ्रमणशील ) हस् + इ = हसिरो (हँसनेवाला, हसनशील ) हसिरा, हसिरी ( हँसनेवाली ) । कुछ अनियमित कर्त सूचक कृदन्त - पायओ = पकानेवाला, रसोइया भेत्ता - भेदन करनेवाला हंता = मारनेवाला, इत्यादि ।
वाक्य-प्रयोग
चकमाय योयस्तो हं पिआ आहूओ ( घूमने जाने वाले मुझको पिता ने बुलाया ) ; मरिस्संतो पिआ पुते आहुज्ज उवाअ ( पिता मरने
प्राकृत सीखें: ५८
विज्जं = विद्वान्
लेहओ – लेखक
For Private and Personal Use Only