Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिट्ठा सो नरो वियखणो होइ (जिसने इस पृथ्वी को भ्रमण कर देखा है वह मनुष्य विचक्षण है); कालसप्पेण खाइज्जन्ती काया केण धरिज्जइ (कालसर्प द्वारा खायी जाती हुई काया किसके द्वारा रक्षित होगी); एगो जायइ जीवो, एगो मरिऊण तह उवज्जेइ (जीव अकेला जन्मता है, अकेला मर कर वैसा ही उत्पन्न होता है); रामो मज्झं कज्जं काऊण गाम गच्छीअ (राम मेरा काम करके गाँव गया है); पुरायण पाठं सुमिरिऊण अग्गपाढो पढसु (पुराना पाठ याद करके आगे का पाठ पढ़ो); अहं भवन्तं पासिऊण पसन्नो अस्थि (मैं आपको देखकर प्रसन्न हूँ); ते तत्थगंतूण भयवंतं वंदिऊण नियएसु ठाणेसु सन्निविट्ठा (वे वहाँ जाकर भगवान की वन्दनाकर अपने-अपने स्थान पर बैठ गये); तया महावीरेण एवं कहिअं (तब महावीर ने ऐसा कहा)। भविष्यकालिक कृदन्त निकटवर्ती भविष्य में होने वाली क्रिया को सूचित करने के लिए भविष्यकालिक कृदन्तों का प्रयोग होता है । इस्संत, इस्समाण एवं इस्सई प्रत्यय जोड़कर ये कृदन्त बनाये जाते हैं तथा प्रेरणार्थक भविष्य कृदन्त में 'आवि' प्रत्यय के बाद अन्य प्रत्यय जोड़े जाते हैं; यथा करिस्संतो, करिस्समाणो (करता होगा) करिस्सई, करिस्संती, करिस्समाणी (करती होगी) कराविस्संतो, कराविस्समाणो (करवाता होगा)। विधि कृदन्त औचित्य, आवश्यकता, सामर्थ्य, योग्यता आदि भाव प्रगट करने के लिए विधि कृदन्त का प्रयोग होता है। इसमें कर्ता में तृतीया एवं कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। धातु में अव्व, अणिज्ज, अणीअ प्रत्यय जोड़े जाते हैं; यथा हसिअव्वं, हसणिज्ज, हसणीअं (हंसने योग्य, हँसना चाहिये) ..करिअव्वं, करणिज्ज, करणीअं (करने योग्य, करना चाहिये)। , प्रेरक विधि कृदन्त में 'आवि' प्रत्यय पूर्व में जोड़ा जाता है; प्रथा प्राकृत सीखें : ५७ For Private and Personal Use Only

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