Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गयी विद्या फल देती है । सग्गम्मि अच्छराओ णिवसंति--स्वर्ग में अप्सराएँ रहती है। भवन्तीए जत्ता सहला होइ--आपकी यात्रा सफल होती है। रेवइ सावियाए वियं गीण्हइ--रेवती श्राविका के व्रत ग्रहण करती है। सा विसयाणं चिंतणं करेइ--वह विषयों का चिन्तन करती है। चन्दपहा सीलवयस्स रक्खं कुणइ---चन्द्रप्रभा शीलवत की रक्षा करती है। हिन्दी में अनुवाद कीजिये लदाहिं घरस्स सोहा हवइ । मालाहिंतो सुयंधो आयइ । हलिहासु सत्ती णिवसइ । मुत्तीए सिद्धा णिवसंति । बहिणी भायरं णेहं कुणइ । माआ ममं सिणेहं करइ । सो नावाए नई तरइ। अहिलासा दुक्करा अत्थि । बाला णयरं गच्छइ । तुमं धूअं हणसि । तुम्हाणं समीवे बहुसंपया अस्थि । महिलाओ सन्ताणं लालन्ति । प्राकृत में अनुवाद कीजिये माता पुत्र को स्नेह करती है। कमला मोहन की पुत्री है । वे लक्ष्मी की इच्छा करते हैं। गंगा का प्रवाह तीव्र है। उनकी अभिलाषा दुष्कर है। आकाश में बिजली चमकती है। वृक्ष की छाया शीतल है। मैं लताओं से फूल तोड़ता हुँ । सीता सभा में बोलती है। प्राकृत सीखें : ३४ For Private and Personal Use Only

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