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(४) उत्तम पुरुष के प्रत्ययों के आदेश (विकल्प) एकवचन : मि--स्सं--भणिसं, भणेस्सं बहुवचन : मो, मु, म-हिस्सा, हित्था--भणिहिस्सा, भणिहित्था
(५) स्वरान्त धातुओं के 'मि' प्रत्यय के रूप कर का ; काहं, कास्सं, कास्सामि, काहामि, काहिमि दा देना ; दाहं, दास्सं, दास्सामि, दाहामि, दाहिमि पा पीना ; --, पास्सं, पास्सामि, पाहामि, पाहिमि
(६) सोच्छ (सुनना) आदि धातुओं में 'मि' के रूप सोच्छ (सुनना) ; सोच्छं, सोच्छिस्सं, सोच्छिमि आदि मोच्छ (छोड़ना) ; मोच्छं, मोच्छिस्सं, मोच्छिमि आदि । _भोच्छ (भोगना), वोच्छ (कहना), दच्छ (देखना), गच्छ (जाना), वेच्छ (जानना) आदि धातुओं के रूप इसी प्रकार बनेंगे।
.. (७) आर्ष प्राकृत के कुछ अनियमित रूप मोक्खामो (छोड़ेंगे); होक्खामि (होऊँगा); भविस्सामि (होऊँगा); करिस्सइ (करेगा); भविस्सइ (होगा); चरिस्सइ (चलेगा) आदि ।
वाक्य-प्रयोग सो जिणनाम कहहिइ (वह जिननाम कहेगा); ते बालआ पढहिन्ति (वे बालक पढ़ेंगे); तुमं मंदिरम्मि पत्थणं करेहिसि (तुम मंदिर में प्रार्थना करोगे); तुम्हे वत्थं कोणाहित्था (तुम लोग कपड़ा खरीदोगे); अहं (विज्जालयं गच्छामि (मैं विद्यालय जाऊँगा); अम्हे वराणसिं गच्छहिस्सामो (हम वाराणसी जाएँगे); चलणम्मि तुम पिवासा लग्गहिसि (चलने पर तुम्हें प्यास लगेगी); अहं सीसाणं उवएसं करिस्सं (मैं शिष्यों को उपदेश करूँगा); मक्खिआ महं लेहिस्सइ (मधुमक्खियाँ मधु चाटेंगी); कन्नाओ गाणं काहिन्ति (कन्याएँ गान करेंगी); तं कज्ज काहिसि तो दव्वं दाहं (वह कार्य करोगे तो द्रव्य दूंगा); जइ सो दुज्जणो होही तया परस्स निंदाए तूसेहिइ (यदि वह दुर्जन होगा तो परनिन्दा से संतुष्ट होगा); अम्हे वाणिज्जेण धणियो होस्सह (हम लोग वाणिज्य से धनी होंगे));
प्राकृत सीखें : ४७
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