Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निंदा मा करहि (बड़ों की निन्दा मत करो); विणम्मि पट्टि बंधहि (घाव पर पट्टी बांधो); उत्तमठे गवेसउ (श्रेष्ठ अर्थ को खोजो); असंजमं णवरं न सेवेज्जा (असंयम का सेवन कभी मत करो); गोयम, समयं मा पमायउ (हे गौतम, समय है, प्रमाद मत करो); जइ सिवं इच्छेह तया कामेहिन्तो विरमेज्ज (यदि मोक्ष की इच्छा करते हो तो काम-वासनाओं से दूर रहो); सदा अप्पपसंसं परिहरह (आत्म प्रशंसा हमेशा के लिए छोड़ो); उज्जोगं मा मुंचह जइ इच्छह सिक्खिउं नाणं (यदि ज्ञान सीखना चाहते हो तो उद्यम मत छोड़ो)। हिन्दी में अनुवाद कीजिये __सवज्जं वज्जउ मुणि। सच्चं बोल्लेज्जा। धम्म समायरे। सुत्तस्स मागेण चरेज्ज भिक्ख। जइणं सासणं चिरं जयउ। सत्थस्स सारं जाणिज्ज। सज्जणेहि सहिदं विरोहं कयावि न कुज्जा। सयल सत्थाई पढउ। संजमं पालउ, तवं कुणउ । . प्राकृत में अनुवाद कीजिये तुम शास्त्र पढ़ो। वह आत्मा का ध्यान करे। हम संयम का पालन करें। वे कभी हिंसा न करें। मुनि तप का आचरण करें। तुम गरीबों को दान दो। हम लोग सदा सत्य बोलें। उनको धर्मशास्त्र पढ़ाओ। छात्र गुरुकुल में विद्या पढ़ें। वे बड़ों का सम्मान करें। क्रियातिपत्ति जब दो वाक्यों में से प्रथम कथन में कारण तथा दूसरे में उसका फल कहा गया हो तो वहाँ क्रियातिपत्ति का प्रयोग होता है। ऐसे प्रयोगों में एक क्रिया दूसरी क्रिया पर निर्भर प्रतीत होती है; यथाझाणेण पढेज्जा, अण्णथा अणूत्तीण्णो होज्जा (ध्यान से पढ़ो नहीं तो अनुत्तीर्ण हो जाओगे)। क्रियातिपत्ति में तीनों पुरुषों को दोनों वचनों से ज्ज, ज्जा, न्त और माण प्रत्यय धातुओं में जोड़े जाते हैं। पुल्लिग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसकलिंग के रूप में अलग-अलग बनते हैं। प्राकृत सीखें : ५२ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74