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पाठ ८ : भूतकाल के क्रियारूप एवं प्रयोग
प्राकृत में भूतकाल के क्रियारूप बहुत सरल हैं। इसमें सभी प्रकार के अतीत प्रयोगों के लिए एक ही प्रकार के क्रियारूपों का प्रयोग होता है, जिसे सामान्य भूत कहते हैं ।
स्वरान्त धातुओं में तीनों पुरुष और दोनों वचनों में सी, ही और हीअ प्रत्यय जोड़कर भूतकाल के क्रियारूप बनते हैं; यथा
पा (पीना) धातु के रूप सर्व पुरुष (पासी (पा+सी) पाअसी (पा+अ+सी) सर्व वचन पाही (पा+ही) पाअही (पा+अ+ही)
पाहीअ (पा+हीअ) पाअहीअ (पा+अ+हीअ) हो (होना)
झा (ध्यान करना) होसी, होही, होही
झासी, झाही, झाही. इसी प्रकार सभी स्वरान्त धातुओं के रूप बनेंगे। व्यंजनान्त धातुओं में सर्वत्र ईअ प्रत्यय जोड़ा जाता है; यथाएकवचन
बहुवचन प्र.पु. हसी
हसीअ म.पु. हसीअ
हसीअ उ.पु. हसी
हसीअ इसी प्रकार कर--करीअ, पढ--पढीअ, वंद--वंदीअ आदि धातुओं के रूप प्रयुक्त होंगे । भूतकाल में 'कर' धातु का 'का' रूप भी होता है। उसके रूप इस प्रकार चलेंगे-कासी, काही, काहीअ (किया) ।
अस् (होना) धातु के तीन पुरुषों और एकवचन में आसि एवं बहुवचन में अहेसि रूप बनते हैं । कहीं-कहीं सर्वत्र आसि रूप का ही प्रयोग होता है।
प्राकृत सीखें : ४३
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