Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir FE जीवो (जीव), जिणिदो (जिनेन्द्र), णरो (नर), आआसो (आकाश), मिओ (मृग), मेहो (मेघ), चन्दो (चन्द्रमा), उज्जमो (उद्यम), निरयो (नरक), मणोरहो (मनोरथ), मोक्खो (मोक्ष), सहावो (स्वभाव), विणयो (विनय), पुत्तो (पुत्र) आदि । उदाहरण के लिए 'जिण' शब्द के विभक्ति-सहित रूप यहाँ दिये गये हैं; अन्य शब्दों के रूप भी इसी प्रकार प्रयुक्त होते हैं। जिण (जिन) एकवचन बहुवचन जिणो, जिणे जिणा जिणं जिणा, जिणे जिणेण, जिणेणं जिणेहि, जिणेहिं, जिणेहिँ जिणाय, जिणस्स जिणाण, जिणाणं जिणत्तो, जिणाओ, जिणाउ जिणत्तो, जिणाओ, जिणाहि जिणाहिन्तो जिणस्स जिणाण, जिणाणं जिणे, जिणम्मि, जिणंसि जिणेसु, जिणेसुं हे जिण, जिणो जिणा क्रिया-रूप वाक्य-रचना में शब्दों के अतिरिक्त क्रियारूपों का ज्ञान बहुत आवश्यक है। प्राकृत के क्रियारूप बहुत सरल हैं। विभिन्न कालों की अन्य क्रियाओं-सम्बन्धी जानकारी आगे दी जाएगी। यहाँ वर्तमानकाल की कुछ क्रियाओं के रूप प्रस्तुत हैं। वर्तमान काल के प्रत्यय एकवचन बहुवचन प्रथम पुरुष न्ति, न्ते, इरे मध्यम पुरुष सि, ए इत्था , ह ; उत्तम पुरुष मि .मो,मु, म # # प्राकृत सीखें : २१ For Private and Personal Use Only

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