Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. जिससे कोई वस्तु आदि अलग हो तो उसे अपादान कहते हैं । अपादान में पंचमी विभक्ति होती है; जैसे-रुक्खाओ पत्तं गिरइ । भय और रक्षा आदि अर्थ की धातुओं के साथ भी पंचमी होती है। जिससे विद्या पढ़ी जाए उसमें भी पंचमी होती है, जैसे-सो गुरुणो पढइ । ६. सम्बन्ध का बोध कराने के लिए षष्ठी विभक्ति होती है; यथारामस्स पुत्तो, रुक्खस्स, पुप्फाणि ; आदि । ७. किसी क्रिया के आधार को अधिकरण कहते हैं, जहाँ या जिसमें कोई कार्य किया जाता है । अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है; जैसेगिहे बालओ णिवसइ। विज्जालयम्मि पढ़इ । सीहो वणे भमइ । ८. कर्मवाच्य वाक्यों में कर्ता में तृतीया, कर्म में प्रथमा, एवं क्रिया कर्म के अनुसार होती है; जैसे-राइणा चिंतियं (राजा ने सोचा), तेण भणियं (उसने कहा) आदि । अन्य आवश्यक नियम यथास्थान दिये जाएँगे। प्राकृत सीखें : १९ For Private and Personal Use Only

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