Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 1 छ. स. www.kobatirth.org --- अप्पाणस्स अप्पाणम्मि क्रिया-कोश उवदिसति - - उपदेश देता है विहरति-- भ्रमण करता है आरोह--चढ़ता है पलायति — भागता है अणुचरति -- सेवा करता है उट्ठइ -उत्पन्न होता है ओअइ-- प्रकाशित करता है। जिणइ — जीतता है Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रवणो सेणा गिरि आरोहइ जो उज्जाणे सुझाणं समायरन्ति मुणिणो गिरिम्मि तप करेन्ति afrat फुल्लिंगा निक्कसं ति इस जीवे या कुणांति गुरु सीसा उवदिसंति साहू गुरुहि सह विहरति वाम्म गमणं सक्कं नत्थि मचुं त्वा सो दुही होइ पाणीसुं तित्थयरा उत्तिमा संति हिन्दी में अनुवाद कीजिये अप्पाणाण अप्पाणेसु समारति-- आचरण करता है चिट्ठइ रहता है निक्कसति -- निकलता हैं अच्चति -- पूजा करता है पत्थति-स्तुति करता है सेवइ -- सेवा करता है विअसइ - - विकास करता है साव-सुनाता है वाक्य-प्रयोग - राजा की सेना पहाड़ पर चढ़ती है । यति उद्यानों में ध्यान करते हैं । - मुनि पहाड़ पर तपस्या करते हैं । -अग्नि से स्फुल्लिंग निकलते हैं । - ऋषि प्राणियों पर दया करते हैं । - गुरु शिष्यों को उपदेश देते हैं । - साधु गुरुओं के साथ भ्रमण करते हैं । - वायु में चलना संभव नहीं है । -- मृत्यु को जानकर वह दु:खी होता है । -- प्राणियों में तीर्थंकर उत्तम हैं । अन्नाणीसुं सुत्ताणं रहस्सं न चिट्ठर । इसिणो तुज्झ घरे भोयणं करेंति । हं मुणिणो अच्चेमि । ते मुणिणो अणुचरन्ति । मच्चुं को अहिल - हइ । तुमं भाणु पेच्छसि । पक्खिणो तरुसुं वसंति । पच्चूसे भाणुणो प्राकृत सीखें : २६ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74