Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BE मुणी मुणिणा मुणीहि मुणिणो, मुणिस्स मुणीण, मुणीणं मुणिणो, मुणित्तो मुणीओ, मुणी हिन्तो, मुणीसुन्तो मुणिणो, म णिस्स मुणीण, मुणीणं मुणिम्मि, मुणिसि मुणीसु, मुणीसं मुणओ, मुणिणो बोहि (बोधि), रवि, कइ (कवि), अरि, समाहि (समाधि), निहि (निधि), तवस्सि (तपस्वी), सुहि (सुधी), नेमि, रिसी (ऋषि), अग्गि (अग्नि), णरवइ (नरपति), हरि आदि इकारान्त शब्दों के रूप मुणि जैसे ही चलेंगे। साहु (साधु) एकवचन बहुवचन साहू साहुणो, साहुओ साहु साहुणो, साहू साहुणा साहूहिं साहुणो, साहुस्स साहूण, साहूणं साहुणो, साहुत्तो साहूहिन्तो, साहूसुन्तो साहुणो, साहुस्स साहूण, साहूणं साहुम्मि, साहुंसि ___साहूसु, साहूसुं हे साहू साहवो, साहओ सवण्णु (सर्वज्ञ), गउ (गो), गुरु, मेरु, धणु, विज्जु (विद्युत्), उच्छु (इक्षु), मच्चु (मृत्यु), सयंभु (स्वयंभू), भाणु, पिउ (पिता), तरु, जंतु (प्राणी), पसु (पशु), थाणु (महादेव), पहु (प्रभु), रिउ (रिपु), विउ (विद्वान्), चारु (सुन्दर), विण्हु (विष्णु) आदि शब्दों के रूप साहु के समान ही चलेंगे। 4. AAAAA प्राकृत सीखें : २४ For Private and Personal Use Only

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