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प्र. पु.
म. पु.
उ. पु.
अस्थि- -है
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गच्छइ- -जाता है पढाइ पढ़ता है।
पण मइ — प्रणाम करता है विहरइ — विहार करता है निदs - निंदा करता है।
लहइ — प्राप्त करता है
मुच्चइ — छोड़ता है मरइ-मरता है
हो ( होना) धातु के रूप
होइ
होसि
होमि
गरहइ — घृणा करता है पेसइ - भेजता है
लिहइ-लिखता है
विसर -रहता है तिथ नहीं है
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नमइ- -नमस्कार करता है।
पावइ — पाता है
भुंजइ-भोगता है गज्जइ गर्जता है णच्च-नाचता है
क्रिया - कोश
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होन्ति, होन्ते, होइरे होइत्था, होह होमो, होम, होम
सन्ति हैं
पुच्छर - पूछता है
जाणइ -- (मुणइ ) जानता है
देइ देता है
इच्छइ - इच्छा करता है वच्चइइ-जाता है
संसरइ - भ्रमण करता है भणइ - कहता है पिवइ-पीता है
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धारइ — धारण करता है कुज्झइ — क्रोध करता है खाअइ-खाता है पडिबोहइ --जगाता है कहइ — कहता है अहिलहइइ-कामना करता है बीह —— डरता है
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खवइ क्षय करता है वसई-रहता है
कुणइ करता है
वाक्य-प्रयोग
अरिहंतनमुक्कारो पढमं मगलं अस्थि - अरिहन्त- नमस्कार प्रथम मंगल है | आरओ मेरुव पिकंपो होइ - आचार्य मेरु के समान निष्कंप होता है । उवझाया रयणत्तयसंजुत्ता होंति - उपाध्याय रत्नत्रय से युक्त होते हैं ।
प्राकृत सीखें : २२
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