Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्र. पु. म. पु. उ. पु. अस्थि- -है - गच्छइ- -जाता है पढाइ पढ़ता है। पण मइ — प्रणाम करता है विहरइ — विहार करता है निदs - निंदा करता है। लहइ — प्राप्त करता है मुच्चइ — छोड़ता है मरइ-मरता है हो ( होना) धातु के रूप होइ होसि होमि गरहइ — घृणा करता है पेसइ - भेजता है लिहइ-लिखता है विसर -रहता है तिथ नहीं है www.kobatirth.org नमइ- -नमस्कार करता है। पावइ — पाता है भुंजइ-भोगता है गज्जइ गर्जता है णच्च-नाचता है क्रिया - कोश Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होन्ति, होन्ते, होइरे होइत्था, होह होमो, होम, होम सन्ति हैं पुच्छर - पूछता है जाणइ -- (मुणइ ) जानता है देइ देता है इच्छइ - इच्छा करता है वच्चइइ-जाता है संसरइ - भ्रमण करता है भणइ - कहता है पिवइ-पीता है - - धारइ — धारण करता है कुज्झइ — क्रोध करता है खाअइ-खाता है पडिबोहइ --जगाता है कहइ — कहता है अहिलहइइ-कामना करता है बीह —— डरता है www. खवइ क्षय करता है वसई-रहता है कुणइ करता है वाक्य-प्रयोग अरिहंतनमुक्कारो पढमं मगलं अस्थि - अरिहन्त- नमस्कार प्रथम मंगल है | आरओ मेरुव पिकंपो होइ - आचार्य मेरु के समान निष्कंप होता है । उवझाया रयणत्तयसंजुत्ता होंति - उपाध्याय रत्नत्रय से युक्त होते हैं । प्राकृत सीखें : २२ For Private and Personal Use Only

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