Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाठ ३ : पुल्लिग शब्दरूप और उनके प्रयोग प्राकृत में तीन लिंग, तीन पुरुष एवं दो वचन होते हैं। द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का ही प्रयोग होता है। पुल्लिग में अकारान्त, इकारान्त' और उकारान्त' शब्दों के प्रयोग पाये जाते हैं । संज्ञा, सर्वनाम, धातु, अव्यय, प्रत्यय आदि की जानकारी भाषा-ज्ञान के लिए आवश्यक होती है; अतः आगामी पाठों में क्रमश: इनकी विशेष जानकारी प्राप्त होगी। यहाँ पुल्लिग शब्दरूप एवं वर्तमानकाल के धातुरूपों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है। अकारान्त शब्दों के विभक्ति-चिह्न विभक्ति एकवचन बहुवचन पढमा (प्रथमा) ओ, ए आ बीआ (द्वितीया) ए, आ तइया (तृतीया) ण, णं हि, हि, हिं चउत्थी (चतुर्थी) य, स्स ण, णं पंचमी (पञ्चमी) तो, ओ, उ, हि त्तो, ओ, उ, हि, हितो सुंतो छट्ठी (षष्ठी) ण, णं सत्तमी (सप्तमी) ए, म्मि, सि सु, सुं संबोहण (सम्बोधन) ओ, लुक् आ प्राकृत के कतिपय अकारान्त शब्द प्रथमा विभक्ति एकवचन में इस प्रकार हैं-देवो (देव), जणो (जन), वीयरागो (वीतराग), समणो (श्रमण), मणुसो (मनुष्य), आइच्चो (आदित्य), आयरिओ (आचार्य), प्राकृत सीखें : २० For Private and Personal Use Only

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